नैतिकता का सुख | दलाई लामा |
नैतिकता का सुख by दलाई लामा हिन्दी pdf book - प्रस्तावना :- सोलह वर्ष की अवस्था में अपना देश खो कर एवं चौबीस वर्ष की अवस्था में शरणार्थी बन मैंने अपने जीवन में बड़ी कठिनाइयों का सामना किया है । जब मैं उनके विषय में सोचता हूँ तो लगता है कि उनसे बचने का मेरे पास न तो कोई साधन था न ही उनका कोई अच्छा समाधान संभव था ।
फिर भी , जहाँ तक मेरी मानसिक शांति एवं स्वास्थ्य का प्रश्न है , मैं दावा कर सकता हूँ कि मैंने उनका सामना भली भांति किया है । इसके फलस्वरूप मैं अपने सारे साधनों -- मानसिक , शारीरिक , एवं आध्यात्मिक -- के साथ उन कठिनाइयों का सामना करने में सफल रहा हूँ । अगर मैं चिंता से धराशायी हो जाता , तो मेरे स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर होता । मेरे कार्यों में भी बाधा होती ।
[ 1 ] जब अपने आसपास देखता हूँ तो पाता हूँ कि सिर्फ हम तिब्बत के शरणार्थी और विस्थापित समुदाय के लोग ही नहीं कठिनाइयों का सामना करते हैं । हर जगह एवं हर समाज में लोग कष्ट एवं विपदा झेलते हैं , वे भी जो स्वतंत्रता एवं भौतिक समृद्धि का आनन्द लेते हैं । वास्तव में , मुझे ऐसा लगता है कि हम मनुष्यों का अधिकांश दुःख हमारे स्वयं का किया है ।
इसीलिए एक सिद्धान्त के रूप में कम से कम इससे बचना संभव है । मैं यह भी देखता हूँ कि सामान्यतया ऐसे व्यक्ति जिनका व्यवहार नैतिक रूप से सकारात्मक होता है , वे ज्यादा प्रसन्न एवम् सन्तुष्ट रहते हैं उन लोगों की तुलना में जो नैतिकता की अवहेलना करते हैं ।
इससे मेरी धारणा की पुष्टि है कि अगर हम अपने विचार एवं अपने व्यवहार में बदलाव ला सकें , तो हम न तो सिर्फ कष्ट का सामना ज्यादा आसानी से करना सीखेंगे , हम बहुत सारे दुखों को उत्पन्न होने से भी रोक सकेंगे ।
[ 2 ] मैं इस पुस्तक में यह दिखाने का प्रयास करूँगा कि पारिभाषिक पद “ सकारात्मक नैतिक व्यवहार ” से मेरा क्या तात्पर्य है । ऐसा करने में मैं मानता हूँ कि नैतिकता एवं सदाचार की सफलता से सामान्यीकरण करना अथवा एकदम निश्चित व्याख्या कठिन है । बहुत ही विरले , अगर कभी हो भी तो , कोई घटना एकदम श्वेत या श्याम होती है ।
एक ही कार्य भिन्न परिस्थितियों में भिन्न नैतिकता एवं सदाचार के रंग एवं मात्रा का होता है । उसी समय , यह आवश्यक है कि इसमें हम इस बात पर एकमत हों कि सकारात्मक कार्य क्या है और नकारात्मक कार्य क्या है , सही क्या है और गलत क्या है , उचित क्या है और अनुचित क्या है ।
पहले लोगों में धर्म के लिए जो आदर था उसका अर्थ था कि एक या दूसरे धर्म के अभ्यास से बहुसंख्यक लोग नैतिक आचार बनाये रखते थे । लेकिन अब ऐसा नहीं है । इसलिए हमें मूलभूत नैतिक सिद्धांतों की स्थापना करने के लिए निश्चय ही कोई दूसरा उपाय ढूंढना चाहिए ।
[ 3 ] पाठक गण यह नहीं सोचें कि दलाई लामा के रूप में मेरे पास देने के लिए कोई विशेष समाधान है । इन पृष्ठों में ऐसा कुछ नहीं है जो पहले नहीं कहा गया हो । वास्तव में मुझे लगता है कि जो चिंतन एवं विचार यहाँ प्रस्तुत किये गये हैं , उन्हें वे बहुत सारे लोग मानते हैं जो हम मनुष्यों की समस्याओं एवं कष्ट के समाधान के बारे में सोचते हैं और प्रयास करते हैं ।
मेरे कुछ मित्रों के सुझाव के उत्तर में एवं पाठकों को यह पुस्तक प्रस्तुत करने में मेरी आशा है कि उन करोड़ों लोगों को आवाज़ मिलेगी जिन्हें सार्वजनिक रूप से अपने विचारों को प्रकट करने का मौका नहीं मिलता है तथा जिन्हें मैं मूक बहुसंख्यक मानता हूँ ।
[ 4 ] लेकिन पाठक यह भी याद रखें कि मेरी विधिवत शिक्षा पूर्ण रूप से धार्मिक एवं आध्यात्मिक रही है । बचपन से ही मेरी शिक्षा का प्रमुख ( और निरन्तर ) विषय बौद्ध दर्शन एवं मनोविज्ञान रहा है । खास तौर से मैंने गेलुक प्रथा के धार्मिक , दार्शनिक विद्वानों के कार्यों का अध्ययन किया है , जिस परम्परा से सारे दलाई लामा आते रहे हैं ।
धार्मिक बहुलवाद में पूर्णतया विश्वास होने के कारण मैंने अन्य बौद्ध परम्पराओं के मुख्य शास्त्रों का भी अध्ययन किया है । परन्तु इसकी तुलना में मुझे आधुनिक धर्मनिरपेक्ष दर्शन को जानने का कम मौका मिला है । फिर भी यह एक धार्मिक पुस्तक नहीं है । यह बौद्ध धर्म के बारे में भी नहीं है ।
मेरा लक्ष्य नैतिकता के लिए एक ऐसे मार्ग का आह्वान करना है , जो वैश्विक सिद्धांतों पर आधारित हो , न कि धार्मिक सिद्धांतों पर ।
[ 5 ] इस कारण वश , सामान्य पाठक गण के लिए पुस्तक लिखना बिना चुनौतियों के नहीं हुआ है , एवं यह एक समूह के परिश्रम का फल है । एक खास समस्या इस कारण से हुई कि तिब्बती भाषा के कई अनिर्वाय शब्दों का आधुनिक भाषा में अनुवाद करना कठिन है ।
इस पुस्तक का उद्देश्य एक दर्शनशास्त्र का आलेख बनना नहीं था , इसलिए मैंने प्रयास किया है कि मैं इन तथ्यों का ऐसे वर्णन करूँ ताकि जो विशेषज्ञ पाठक नहीं हैं वे भी समझ सकें एवं उनका अन्य भाषाओं में भी स्पष्ट अनुवाद हो सके । ऐसा करने में , एवं उन लोगों के लिए सुस्पष्ट व्याख्या करने में जिनकी भाषा एवं संस्कृति मेरे से काफी भिन्न हो , यह संभव है कि तिब्बती भाषा की गूढता खोयी हो , और कुछ अनचाहे अर्थ जुड़ गये हों ।
मेरा विश्वास है कि सतर्क संपादन ने ऐसा न्यूनतम कर दिया हो । जब भी कोई ऐसी गलती सामने आती है , मुझे आशा है कि आने वाले संस्करण में मैं उनका सुधार रूँगा । इस बीच इस विषय में उनकी सहायता के लिए , इसे इंग्लिश में अनुवाद करने के लिए , एवं उनके अनगिनत सुझाओं के लिए मैं डॉक्टर थुप्टेन जिन्पा को धन्यवाद देता हूँ ।
मैं श्री ए आर नार्मन को भी संशोधन के लिए धन्यवाद देता हूँ । यह बहुमूल्य रहा है । अंत में , मैं उन सब को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को सफल बनाने में सहायता की है ।
[ 6 ] धर्मशाला , फ़रवरी १ ९९९ मनन योग्य प्रश्न १. “ सकारात्मक नैतिक व्यवहार " से लेखक का क्या तात्पर्य है ? २. आप नैतिकता के ऐसे मार्ग की सम्भावना के बारे में क्या सोचते हैं जो वैश्विक सिद्धांतों पर आधारित हो , न कि धार्मिक सिद्धांतों पर ।
In English
Happiness of Morality by Dalai Lama Hindi pdf book - Preface:- I have faced great difficulties in my life by losing my country at the age of sixteen and becoming a refugee at the age of twenty-four. When I think about them, it seems that I had neither any means to avoid them nor any good solution was possible for them.
Nevertheless, as far as my mental peace and health is concerned, I can claim that I have faced them well. As a result, I have been able to face those difficulties with all my means – mental, physical, and spiritual. If I was overwhelmed by anxiety, it would have a bad effect on my health. There were obstacles in my work too.
[1] When I look around, I find that it is not only us refugees and displaced people of Tibet who face difficulties. People everywhere and in every society suffer hardships and calamities, even those who enjoy freedom and material prosperity. In fact, it seems to me that most of the suffering we humans have caused is our own.
So it is possible to avoid it at least as a principle. I also see that generally people who have morally positive behavior are happier and more satisfied than those who disregard morality.
This confirms my belief that if we can change our thoughts and our behavior, we will not only learn to cope with suffering more easily, we will also be able to prevent a lot of suffering from arising.
[2] In this book I will try to show what I mean by the term "positive ethical behavior". In doing so, I agree that it is difficult to generalize or explain exactly the success of morality and virtue. Very rarely, if ever, an event is completely black or white.
The same work is of different color and quantity of morality and virtue under different circumstances. At the same time , it is necessary that we agree on what is positive action and what is negative action , what is right and what is wrong , what is right and what is wrong .
The reverence that the people had for religion in the past meant that the practice of one religion or the other meant that the majority of the people maintained moral ethos. But now it is not so. So we must find some other way to establish fundamental moral principles.
[ 3 ] Readers should not think that as the Dalai Lama I have a specific solution to offer . There is nothing on these pages that hasn't been said before. In fact, I think that the thoughts and ideas presented here are considered by many people who think and try to solve the problems and sufferings of us human beings.
In response to the suggestion of some of my friends and in presenting this book to the readers, I hope to give a voice to the millions of people who do not get a chance to express their views in public and whom I consider a silent majority.
[ 4 ] But the reader should also remember that my formal education has been purely religious and spiritual. The main (and continuing) subject of my education since childhood has been Buddhist philosophy and psychology. In particular I have studied the works of religious, philosophical scholars of the Geluk system, the tradition from which all the Dalai Lamas have come.
Being a firm believer in religious pluralism, I have also studied the main scriptures of other Buddhist traditions. But in comparison I have had less opportunity to know modern secular philosophy. Yet it is not a religious book. It is not even about Buddhism.
My goal is to call for a path to morality that is based on universal principles, not religious principles.
[ 5 ] For this reason , writing a book for the general readership has not been without challenges , and it is the result of a group 's hard work . A particular problem has arisen because it is difficult to translate many of the essential words of the Tibetan language into modern language.
The purpose of this book was not to be a philosophical article, so I have tried to describe these facts in such a way that even those who are not expert readers can understand and they can be translated clearly in other languages also. In doing so, and in explaining it clearly to people whose language and culture differ greatly from mine, it is possible that the esotericity of the Tibetan language may have been lost, and some unwanted meanings may have been added.
I believe careful editing has reduced this to a minimum. Whenever any such mistakes come to the fore, I hope to rectify them in the upcoming version. In the meantime I would like to thank Dr. Thupten Jinpa for his help in this matter, for translating it into English, and for his numerous suggestions.
I also thank Mr. AR Norman for his amendment. It has been valuable. Finally, I want to thank all those who have helped make this book a success.
[ 6 ] Dharamsala , February 1999 Questions to consider 1. What does the author mean by "positive ethical behavior"? 2. What do you think about the possibility of a path of morality that is based on universal principles and not on religious principles
पुस्तक का नाम/ Name of EBook: |
नैतिकता का सुख |
पुस्तक के लेखक / Author of Book : |
दलाई लामा |
पुस्तक की भाषा/ Language of Book : |
हिंदी
/ Hindi |
पुस्तक का आकार / Size of Ebook :
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2 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ / Total Page in Ebook :
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183 Page |
status |
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