सम्पन्नता के छिपे हुए रहस्य | नेपोलियन हिल | Sampannata Ke Chipe Huye Rahasya | Napoleon Hill | Hindi Book

सम्पन्नता के छिपे हुए रहस्य  | नेपोलियन हिल |Sampannata Ke Chipe Huye Rahasya | Napoleon Hill                                  

सम्पन्नता के छिपे हुए रहस्य  by नेपोलियन हिल pdf बुक


सम्पन्नता के छिपे हुए रहस्य  (  Sampannata Ke Chipe Huye Rahasya ) नेपोलियन हिल बुक - वे साढ़े पाँच फुट के थे और उनका नाम नेपोलियन हिल था । बहुत से लोग उन्हें प्रेरक लेखन का जनक कहते हैं । निश्चित रूप से वे सभी सफलता गुरुओं के गुरु हैं । 

वे सारे समय की नंबर वन बेस्टसेलर पुस्तक थिंक एंड ग्रो रिच के लेखक हैं । हिल बहुत विपरीत परिस्थितियों का मुक़ाबला करके ऊपर उठे थे । जीवन में जल्दी ही उन्होंने इस सर्वव्यापी प्रश्न का जवाब खोजने का बीड़ा उठाया : आख़िर वह कौन - सी चीज़ है , जो विजेताओं को विजेता बनाती है ? उन्होंने दूसरी चीज़ों के अलावा यह पाया कि अमीर बचपन के बजाय ग़रीब बचपन सफलता की ज़्यादा गारंटी देता है । यह कई आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटनों में से एक था । 

ऐंडू कारनेगी के परिचय पत्र से लैस होकर हिल ने संसार के विजेताओं के रहस्य खोज निकालें । इसके लिए उन्होंने उस तरकीब का इस्तेमाल किया , जो उनसे पहले किसी ने भी नहीं सोची थी : उन्होंने महानतम लोगों से पूछा कि वे महान कैसे बने । 

इस प्रक्रिया में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वे खुद विजेता बन गए और उन्होंने अंततः ख़ुद को मार्कस ऑरेलियस , रैफ़ वॉल्डो इमर्सन और बेन फ्रैंकलिन की जमात में खड़ा पाया । लेकिन नेपोलियन हिल बनने से पहले उन्होंने दो पत्रिकाएँ शुरू करके बचपन का सपना साकार किया । 

वे तब तक 25,000 लोगों में से आधों का " विश्लेषण " कर चुके थे और बाक़ी का करने की कगार पर थे , इसलिए उनके पास ज्ञान का भंडार आ चुका था । लेकिन बड़े दिल वाला वह छोटा आदमी तब भी पैंतीस के आस - पास था । 

पत्रिकाओं में लिखना पुस्तक लिखने से अलग होता है और इसमें दोटूक बातों और व्यक्तिगत जानकारी देने की ज़्यादा गुंजाइश रहती है । उनकी पुस्तकें ज्ञान देती हैं , लेकिन अपनी पत्रिकाओं में नेपोलियन हिल पूरी तरह खुलकर बात करते हैं । 

उनकी एक स्वीकारोक्ति यह है , " मेरे 36 में से 25 साल दुखद थे । लेकिन आज तक मेरा कोई भी काम इतना सफल साबित नहीं हुआ , न ही उससे मुझे इतनी सच्ची खुशी मिली , जितनी इस छोटी पत्रिका पर काम करने से मिली है । "

अपनी पत्रिका में आरामदेह होने की वजह से ही नेपोलियन हिल यह उजागर कर पाए : " लगभग पंद्रह साल पहले पहली बार जब मेरे मन में किसी पत्रिका का स्वामी और संपादक बनने का विचार आया , तो मैं हर बुरी चीज़ की धज्जियाँ उड़ाना चाहता था । 

शायद इसीलिए क़िस्मत के देवताओं ने उस वक़्त मुझे पत्रिका शुरू नहीं करने दी होगी ... " इस पुस्तक के एक से अधिक अध्यायों में हिल उस चीज़ के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं , जिसे कम दूरदर्शी लोग " असफलता " कहते हैं । 

उनका खुद का जीवन विजयी असफलताओं की अनवरत श्रृंखला थी । पचास साल पार करने के बाद उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि एक पूरा दशक गुज़र गया था , लेकिन उन पर कोई व्यक्तिगत विपत्ति क्यों नहीं आई थी । 

नेपोलियन हिल अक्सर नीचे गिरने के बावजूद मैदान नहीं छोड़ते थे । वे कभी अपने " निश्चित मुख्य लक्ष्य " से नहीं डगमगाते थे । वे संसार के करोड़ों लोगों को यह सिखाने वाले थे कि तक़दीर को भी बदला जा सकता है और असफलताओं से भी लाभ उठाया जा सकता है । 

इंसान अपने अनुभव से कितनी अच्छी तरह सीख सकता है , और कैसे सीख सकता है ? बाद में उन्होंने पूरे अधिकार से कहा था , जो सिर्फ़ अनुभव से ही आ सकता है , " सफलता के लिए व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती । 

असफलता बहानों की अनुमति नहीं देती । " हिल का जन्म 1883 में वाइज़ काउंटी , वर्जीनिया की पहाड़ियों में एक कमरे के केबिन में हुआ था । उन्होंने तेरह वर्ष की उम्र में अपना लेखन करियर शुरू किया और कस्बे के छोटे अख़बारों के लिए " पहाड़ों के रिपोर्टर " का काम करने लगे । 

उन्होंने विपरीत परिस्थितियों से उबरने वाले असली लोगों के बारे में असली तथ्यों के प्रति अपनी भूख कभी नहीं मिटने दी , जिनमें वे ख़ुद शामिल थे । इसी अनुभव से उन्होंने सीखा कि दबंग लीडर्स से उनकी पराजयों और विजयों के बारे में साक्षात्कार कैसे लें । 

नेपोलियन हिल असफलता - से - सफलता की कहानियों में से एक हैं । वे बहुत छोटे थे , तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था । उनके पिता ने एक शिक्षित , निर्भीक महिला से विवाह किया , जो ग़रीबी से चिढ़ती थीं , जैसा हिल ने बाद में बताया । 

हिल की सौतेली माँ ने पारिवारिक स्टोर और खेत सँभाले और उनके पिता को 40 साल की उम्र में डेंटल स्कूल भेजा । उन्होंने ही नेपोलियन को वह रीढ़ प्रदान की , जिसकी ज़रूरत उन्हें वर्जीनिया घाटी से निकलने के लिए थी । 

उनकी सौतेली माँ ने ही नेपोलियन के मन में वह विचार रखा , जिसके लिए वे बाद में सबसे ज़्यादा मशहूर होने वाले थे : " इंसान का मन जो भी सोच सकता है , उसे वह हासिल भी कर सकता है । " नेपोलियन हिल का यह शुरुआती लेखन , जिसे इससे पहले शायद ही कभी देखा गया है , ताज़गी भरा और ज्ञानवर्धक है । 

उनकी पत्रिकाएँ वे शिशु थीं , उनके ख़ुद के पन्ने वे साँचे थे , जिनकी बुनियाद पर उन्होंने सारे समय की सबसे प्रेरक पुस्तकों में से एक लिखी ।

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