लोक व्यवहार | Lok Vyavhar | Dale Carnegie | Hindi Pdf Book

लोक व्यवहार | Lok Vyavhar | Dale Carnegie | Hindi Pdf Book

Lok Vyavhar by Dale Carnegie hindi pdf book free downlod




परिचय :-  मानव जीवन में लोक व्यवहार का बहुत महत्त्व है , बल्कि यह कहा जाए कि लोक व्यवहार में कुशलता ही मनुष्य को इनसान बनाती है , उसे सफलता के द्वार तक पहुँचाती है , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । बिना उचित लोक व्यवहार के लोक को जीतना असंभव है । लोक व्यवहार व्यक्ति का कायांतरण कर देता है । जैसे खदान से निकलनेवाले खनिज को तपाकर सोना बनाया जाता है , वैसे ही लोक व्यवहार की चाशनी में पककर व्यक्ति खरा सोना बन जाता है । इस पुस्तक में डेल कारनेगी ने लोक व्यवहार को जीवन में उतारने के लिए जो - जो नियम , सिद्धांत तय किए हैं ; जीवन में उन्हें अपनाना जरा भी कठिन नहीं है , इन्हें कोई भी सरलता से अपना सकता है । इसमें जेब से पाई भी खर्च नहीं करनी पड़ती ; अलबत्ता जेब मान - सम्मान , धन - दौलत , इज्जत - शौहरत इत्यादि लोकोपयोगी संसाधनों से भरी रहती है । क्यों न इस सद्गुण को जीवन में अपनाया जाए - आज ही से शुरू करें । . . . 

लोक व्यवहार के सामान्य नियम 

अपनी बातों को नाटकीय अंदाज में पेश करें और चमत्कारी परिणाम देखें । 

अपनी सभी गलतियाँ तथा कमियाँ गिनाने के बाद ही किसी की कमियाँ गिनाएँ । 

अपने विचार को इस दृढ़ता से पेश करें कि सामनेवाले को वह अपना ही विचार लगने लगे । 

आदर्शवाद के सिद्धांत को जीवन में प्रश्रय दें । 

आदेश देने की बजाय प्रश्न पूछे । 

ईमानदारी के साथ सामनेवाले इनसान का नजरिया समझने की कोशिश करें । 

ईमानदारी के साथ सामनेवाले को उसका दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का अवसर दें और उसके विचारों तथा इच्छाओं के प्रति सहानुभूति दरशाएँ । 

काम या बात की शुरुआत दोस्ती भरे अंदाज में करें और सामनेवाले को ज्यादा बोलने का अवसर दें ।  

गलती होने पर उसे स्वीकार करने में झिझकें नहीं ।  

चुनौतियाँ दीजिए और लीजिए । 

दूसरों को प्रोत्साहित करते हुए बताएँ कि गलतियों को सुधारना कठिन काम नहीं है । 

बहस का लाभ यह है कि उससे बचकर निकल जाएँ । 

बात इस प्रकार आरंभ करें कि सामनेवाला तुरंत ' हामी भर दे । ' 

लोगों की गलतियों को दो टूक बताने की भूल कभी न करें । 

व्यक्ति को एक ऐसी छवि में कैद कर दें , जिसे वह बदलना न चाहे । 

व्यक्ति को नाम से पुकारें , जो उसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण तथा आनंददायक शब्द होता है । 

सबके विचारों का सम्मान करें । उन्हें गलत न ठहराएँ । 

सामने मौजूद व्यक्ति को अपमनित न करें । 

सामनेवाले को प्रोत्साहित करें और यह बताएँ कि गलतियों को सुधारना मुश्किल काम नहीं है ।  

सामनेवाले को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें और अच्छे श्रोता बनें । 

सामनेवाले व्यक्ति के विचारों तथा इच्छाओं के बारे में सहानुभूति जरूर प्रदर्शित करें । 

सामनेवालों में सच्ची तथा वास्तविक दिलचस्पी लें ।

हमेशा मुसकान बिखेरें ।  हमेशा सच्ची तारीफ से अपनी बात की शुरुआत करें ।  

हर सुधार की खुले दिल से तारीफ करें । 


इस पुस्तक से अधिकाधिक लाभ लेने के तरीके 

यदि आप इस पुस्तक से अधिक - से - अधिक लाभ उठाना चाहते हैं तो एक अपरिहार्य एवं किसी भी नियम अथवा विधि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण शर्त का होना आवश्यक है । जब तक आपके पास वह आवश्यक शर्त नहीं है , तब तक अध्ययन करने के ढंग के आपके हजारों नियम भी व्यर्थ हैं , किंतु अगर आप के पास वह प्रधान गुण है , तो आप किसी भी पुस्तक से बिना सुझाव पढ़े कोई कमाल कर सकते हैं । 

वह चमत्कारित शर्त क्या है ? वह है - सीखने की गहन एव प्रेरक उत्कंठा तथा चिंता रोकने और जीवनयापन करने का प्रबल एवं दृढ संकल्प । 

ऐसी उत्कंठा का विकास आप कैसे कर सकते हैं ? आप अपने आप को निरंतर स्मरण दिलाते रहकर कि ये सिद्धांत कितने प्रमुख हैं , यह कर सकते हैं । अपने सामने एक चित्र खींचिए कि उन सिद्धांतों का प्रभाव आप को वैभवपूर्ण और अधिक सुखी जीवन बिताने में किस प्रकार सहायता करेगा । 

मन - ही - मन बार - बार दुहराते रहिए कि ' मेरे मस्तिष्क की शांति , मेरा सुख , मेरा स्वास्थ्य और संभवतः आगे जाकर मेरी आय भी बहुत हद तक इस पुस्तक में बताए गए पुरातन , सहज एवं निरंतन सत्यों के प्रयोग पर निर्भर करती है । ' 

प्रत्येक अध्याय को पहले जल्दी - जल्दी सरसरी निगाह से पढ़ जाइए । आप को शायद अगला अध्याय पढ़ने का लोभ हो आए , किंतु ऐसा मत कीजिए । यदि आप केवल मनोरंजन के लिए पढ़ रहे हैं तो बात दूसरी है , किंतु यदि आप चिंता का निवारण कर जीवनयापन करने के लिए पढ़ रहे हैं तो प्रत्येक अध्याय को सांगोपांग दुहरा लीजिए । आगे चलकर इससे आपके समय की बचत होगी और उसका परिणाम भी निकलेगा । 

पढ़ते समय पढ़ी हुई सामग्री पर विचार करने के लिए बार - बार रुकते जाइए , मन - ही - मन सोचिए कि प्रत्येक सुझाव का प्रयोग आप कब और कैसे कर सकते हैं । इस प्रकार का पढ़ना जल्दी पढ़ने से कहीं अधिक सहायक . होगा । 

पढ़ते समय अपने हाथ में पैसिल , लाल पैसिल या पेन रखिए और जब कभी आप ऐसा सुझाव पढ़ें व आपको लगे कि उसका उपयोग आप कर सकते हैं , तो उसके पास एक लकीर खींच लीजिए । यदि वह चार तारोंवाला संकेत हो तो प्रत्येक वाक्य के नीचे लकीर खींचिए या उसपर क्रॉस का चिह्न लगा दीजिए । चिह्न लगाने और नीचे लकीर खींचने से पुस्तक अधिक मनोरंजक बन जाती है और जल्दी से उसकी पुनरावृत्ति करने में सरलता हो जाती 

मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ , जो पंद्रह वर्ष से एक बड़ी इंश्योरेंस कंपनी का मैनेजर है । वह हर महीने अपनी कंपनी द्वारा जारी किए गए इंश्योरेंस के सभी इकरारनामे पढ़ता है और वह उन्हें महीनों एवं वर्षों तक पढ़ता रहता है । क्यों ? इसलिए कि उसने अनुभव से यह सीखा है कि उन इकरारनामों की शर्तों को ठीक - ठीक याद रखने का यही एक तरीका है ।  

एक बार मैंने पब्लिक स्पीकिंग पर एक पुस्तक लिखने में लगभग दो वर्ष बिता दिए , फिर भी अपनी पुस्तक में जो कुछ भी मैंने लिखा था , उसे याद रखने के लिए उस पुस्तक को समय - समय पर मुझे पढ़ते रहना पड़ता है । जिस शीघ्रता से हम बातों को भूल जाते हैं , उसपर आश्चर्य होता है । .


इसलिए यदि आप इस पुस्तक से वास्तविक और स्थायी लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तो यह मत समझिए कि एक बार इसे सरसरी निगाह से देख लेना पर्याप्त है । इसको भली - भाँति पढ़ लेने के बाद आपको चाहिए कि हर महीने इसे दुबारा पढ़ने में आप कुछ घंटे खर्च करें और प्रतिदिन इसे आप अपनी डेस्क पर अपने सामने रखें । 

प्रायः इसे उलटते - पलटते और निरंतर अपने मन पर संस्कार डालते रहें कि इस पुस्तक की सहायता से आप कितनी बड़ी उन्नति कर सकते हैं । याद रखिए , इन सिद्धांतों का निरंतर प्रयोग तथा दोहराव ही इन्हें आपके स्वभाव का एक अंग बना सकेगा और तभी आप अनजाने ही इन पर आचरण करने लगेंगे । इसके सिवा दूसरा कोई उपाय है ही नहीं । 

बर्नाड शॉ ने एक बार कहा था , " यदि आप किसी मनुष्य को कोई बात सिखाना चाहेंगे तो वह कभी नहीं सीखेगा । " शॉ का यह कथन सही था । सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है । हम काम करके ही सीखते हैं । इसलिए यदि आप उन सिद्धांतों पर पूर्ण प्रभुत्व पाना चाहते हैं , जिनका अध्ययन आप इस पुस्तक में कर रहे हैं , तो उनके संबंध में कुछ कीजिए । 

जब भी सुयोग मिले , इन नियमों का प्रयोग कीजिए । यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें जल्दी ही भूल जाएँगे । केवल वही ज्ञान मस्तिष्क में टिकता है , जिसका उपयोग किया गया हो । संभवत : हर समय आपको इन सुझावों का प्रयोग कठिन लगे । मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि मैंने यह पुस्तक लिखी है । 

फिर भी प्राय : इसमें लिखी गई प्रत्येक बात का प्रयोग करना मुझे कठिन जान पड़ता है । इसलिए जब भी आप यह किताब पढ़ें , याद रखें कि आप केवल जानकारी प्राप्त करने का ही प्रयत्न नहीं कर रहे हैं , बल्कि नई आदतों का निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं । हाँ , आप नवीन जीवन - मार्ग का निर्माण कर रहे हैं और उसके लिए यथा समय सतत प्रयोग करते रहने की आवश्यकता रहेगी । 

इसलिए इन पन्नों को प्रायः देखते रहिए । इसे चिंता पर विजय पाने के लिए एक व्यावहारिक गुटका समझिए और जब आपके सामने कोई कठिन समस्या आ खड़ी हो , तो विचलित न होइए । स्वभाव एवं आवेग में मत बह जाइए । ऐसा करना सामान्यतः गलत होता है । इसके बजाय इन पन्नों को टटोलिए और रेखांकित अनुच्छेदों को पढ़ जाइए । तब इन नवीन रीतियों का उपयोग कीजिए और उनके चमत्कार को देखिए ।  

जब कभी आपकी पत्नी आपको इस पुस्तक के किसी एक सिद्धांत को भंग करते हुए टोके तो आप उसे तय नकदी दे दीजिए , वह आपको उत्साहित एवं प्रेरित करेगी । इस पुस्तक के पृष्ठ खोलिए और पढ़िए कि वॉल स्ट्रीट बैंकर , एच.पी. हॉवेल तथा वेन फ्रेंकलिन ने अपनी गलतियों को किस प्रकार सुधारा ? आप भी इस पुस्तक में वर्णित सिद्धांतों के प्रयोग की पुष्टि करने के लिए हॉवेल तथा फ्रेंकलिन की पद्धति को काम में क्यों नहीं लाते ? यदि आप ऐसा करेंगे तो परिणाम में दो बातें होंगी पहली , आप अपने को एक ऐसी शिक्षा - प्रक्रिया में नियोजित करेंगे , जो अमूल्य एवं कौतूहलपूर्ण है । दूसरी , आप देखेंगे कि चिंता रोकने और जीवनयापन करने की आपकी क्षमता कड़वी बेल की तरह फलने फूलने लगेगी ।  

आप एक डायरी रखिए , जिसमें आपको चाहिए कि इन सिद्धांतों के प्रयोग की सफलताओं को लिख डालें । जो कुछ लिखें , ठीक लिखें । नाम , तिथियाँ तथा परिणामों को भी लिखें । इस प्रकार का लेखा रखने से आपको बड़े उद्योग करने की प्रेरणा मिलेगी और आज से कई वर्ष बाद किसी शाम को , जब कभी आप उसमें लिखी घटनाओं पर दृष्टि डालेंगे तो यह लेखा आपको अत्यंत मोहक प्रतीत होगा । .


पुस्तक को कैसे पढ़ें ? 

आगे बढ़ने से पहले प्रत्येक परिच्छेद को दुहरा लीजिए ।

पढ़ते समय बार - बार रुकिए और मन - ही - मन सोचिए कि प्रत्येक सुझाव का उपयोग आप किस प्रकार कर सकते है 

प्रत्येक प्रमुख विचार को रेखांकित कीजिए । 

प्रति मास पुस्तक का पुनरावलोकन कीजिए ।  

जब भी सुयोग मिले , इन सिद्धांतों का उपयोग कीजिए । आपकी रोज की समस्याओं को हल करने के लिए इस पुस्तक को व्यावहारिक - पुस्तिका के रूप में काम में लीजिए ।  

जब कभी आपका कोई मित्र आपको इन सिद्धांतों को भंग करते हुए टोके , तो आप उसे हर बार पैसे देकर अपने इस अध्ययन को एक रोचक खेल बना दीजिए । 

प्रति सप्ताह अपनी प्रगति का ब्योरा लीजिए तथा मन - ही - मन सोचिए कि आपने क्या भूलें की हैं , भविष्य के लिए आपने क्या सुधार किए हैं तथा क्या शिक्षा ग्रहण की है ? 

इस पुस्तक के पृष्ठ भाग में एक डायरी रखिए , जो यह बताए कि आपने इन सिद्धांतों का प्रयोग कब और कैसे किया है ? 

पुस्तक का नाम/ Name of EBook:

लोक व्यवहार | Lok Vyavhar

पुस्तक के लेखक / Author of Book :

Dale Carnegie 

पुस्तक की भाषा/ Language of Book :

हिंदी / Hindi

पुस्तक का आकार / Size of Ebook :

 

2 MB

पुस्तक में कुल पृष्ठ / Total Page in Ebook :

 

136  Page

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