ज्ञानमार्ग कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद | Hindi Book Download
पुस्तक के बारे में जानकारी -
Name of EBook / पुस्तक का नाम :- ज्ञानमार्ग कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद
Author of Book / पुस्तक के लेखक :- देवकी नंदन गौतम
Language of Book / पुस्तक की भाषा :- हिंदी / Hindi
Size of Ebook /पुस्तक का आकार :- 2.14 MB
Total Page in Ebook / पुस्तक में कुल पृष्ठ :- 117 Page
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बुद्धियोग में निरंतरता और प्रेम प्रवाह आवश्यक गुणक हैं । संलग्नता इनके समानुपाती की स्थिति प्राप्त कर पाती है । स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना व्यापक और विस्तार लिये हुए है कि उसका एक अंश भी प्रबुद्धजन तक की समझ के समक्ष बौद्धिक चुनौती प्रस्तुत करता है , वैसे इस सरोवर के पास पहुँचने तक की ही कठिनाई है , ' आवत एहि सर अति कठिनाई ।
' एक बार प्रारंभ किया नहीं कि आनंद की वर्षा होने लगती है और मन आगे बढ़ते रहने को करता है ।
जब बात पढ़ने से आगे चिंतन , मनन और अनुकरण की आती है तो बुद्धि की परीक्षा शुरू हो जाती है ।
आज के अफरा - तफरी भरे व्यस्त कदाचित् अस्त - व्यस्त जीवन में विवेकानंद के अध्ययन में गहरे उतरना या उसका एक सामान्य सर्वेक्षण चाहते हुए भी नहीं हो पाता है ; फिर स्वामी विवेकानंद को समझने के कई स्तर हैं ,
जिसमें उनके साहित्य तथा व्यक्तित्व का पाठ ही इतना विस्तृत है कि पाठक सोचता रह जाए , फिर बौद्धिक समझ , आध्यात्मिक समझ , शिक्षाओं का अभ्यास करना , उन्हें जीवन में उतारना और अनुभव करना ये क्रियाएँ भी पाठ के साथ ही अवश्यमेव करणीय हैं ।
दक्षिणेश्वर के परमहंस का आश्रय लेकर प्रयास और अभ्यास करना चाहिए , तथापि ज्ञान के अवतरण का अपना अलग विज्ञान भी होता है । जिसका अनुभव प्रयास करनेवाले को अवश्यमेव होता है ।
ठाकुर का कथन है कि यदि ईश्वर की दिशा में मनुष्य अपना एक कदम बढ़ाता है तो ईश्वर उसकी ओर दस कदम की यात्रा करता है । प्रस्तुत पुस्तक ईश्वर की दिशा में बढ़ाया गया लेखक के बालप्रयास का एक कदम है , जो स्वामी विवेकानंदजी के व्यक्तित्व एवं कृतत्व पर एक संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास करता है , जैसे कि पुस्तक के नाम ' अद्वैत वेदांत से विश्व - प्रेम की ओर – ज्ञानमार्ग कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद ' से स्पष्ट है ।
यह कार्य स्वामीजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के एक विशिष्ट अंश पर केंद्रित है और उसको समाज में बखान करने का प्रयास करता है । यह आसान नहीं था , अधैर्य और निराशा के क्षण इस अनुष्ठान में साक्षी देने आते रहे ।
ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस की कृपा लेखक पर अवश्य है , अन्यथा यह पूरी तो क्या , प्रारंभ भी नहीं हो पाती और यहाँ रामचरितमानस की अधूरी छूटी अर्धाली ' आवत एहि सर अति कठिनाई । ' को पूरा करने का स्थान और समय है ।
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