स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda | Hindi Pdf Book Free Downlod
पुस्तक का नाम/ Name of EBook: | स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda |
पुस्तक के लेखक / Author of Book : | सचिन सिंघल |
पुस्तक की भाषा/ Language of Book : | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का आकार / Size of Ebook :
| 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ / Total Page in Ebook Swami Vivekananda :
| 11 Page |
Downloding status |
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का जन्म 12 जनवरी , 1863 को कलकत्ता में हुआ था । इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था । इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे । इनकी स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं । उनका अधिकांश समय भगवान् शिव की पूजा - अर्चना में व्यतीत होता था ।
बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के और नटखट थे । अपने साथी बच्चों के साथ तो वे शरारत करते ही थे , मौका मिलने पर वे अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे । नरेंद्र के घर में नियमपूर्वक रोज पूजा - पाठ होता था । धार्मिक प्रवृत्ति की महिला होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवीजी को पुराण , रामायण , महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था ।
कथावाचक बराबर इनके घर आते रहते थे । नियमित रूप से भजन - कीर्तन भी होता रहता था । परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए ।
माता - पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी । ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी - कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि स्वयं माता - पिता और कथावाचक पंडितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे ।
माता - पिता ने बड़े लाड़ - प्यार से अपने इस विलक्षण बालक का पालन - पोषण किया । पाँच वर्ष की आयु का होने पर उन्होंने नरेंद्र की पढ़ाई की व्यवस्था घर पर ही कर दी । नरेंद्र ने मन लगाकर अपने अध्यापक से पढ़ना - लिखना शुरू कर दिया ।
पढ़ाई के साथ - साथ बालक नरेंद्र अपने घर में या अड़ोस - पड़ोस में होनेवाले धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर कीर्तन करने और ध्यान लगाकर बैठने में रुचि लिया करता । उनकी हवेली के पास एक बगीचा था । एक दिन वे अपने साथियों के साथ ध्यानमग्न होकर बैठे थे कि एक काला साँप बगीचे से निकलकर आया और रेंगता हुआ पूजा की थाली के पास पहुँच गया ।
साँप की आहट पाकर बच्चों ने आँखें खोली तो देखा , एक काला साँप फन फैलाए भगवान् शंकर की मूर्ति के पास खड़ा है । उसे देखते ही सभी बच्चे घबराकर ' साँप - साँप ' कहते हुए भागने लगे । बच्चों ने भुवनेश्वरी देवीजी के पास जाकर उन्हें साँप के बारे में बताया ।
वे दौड़कर उस स्थान पर पहुँची , जहाँ साँप फन फैलाकर बैठा था और उसके निकट ही बालक नरेंद्र ध्यानमग्न बैठे थे । वह दृश्य देखकर भुवनेश्वरी देवी का कलेजा दहल गया । वे चीखने ही वाली थीं , परंतु अपने आपको सँभालते हुए उन्होंने हाथ जोड़कर शंकर भगवान् से प्रार्थना की कि साँप मेरे बेटे को छोड़ दे और वहाँ से चला जाए ।
तभी साँप ने फन समेटा और देखते - ही - देखते वहाँ से चला गया । उसके बाद बालक नरेंद्र का ध्यान खुलवाकर भुवनेश्वरी देवीजी ने उन्हें साँप के बारे में बताया , लेकिन तब भी उन्हें बिलकुल डर नहीं लगा ।
पाँच वर्ष की आयु में ही बड़ों की तरह सोचने तथा व्यवहार करनेवाला और अपने विवेक से हर जानकारी की विवेचना करनेवाला यह विलक्षण बालक सदैव अपने आस - पास घटित होनेवाली घटनाओं के बारे में सोचकर स्वयं निष्कर्ष निकालता रहता था ।
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