व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास | VYAKTITVA KA SAMPOORNA VIKAS SWAMI VIVEKANANDA |
पुस्तक के बारे में जानकारी -
पुस्तक का नाम/ Name of EBook: | व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास | VYAKTITVA KA SAMPOORNA VIKAS SWAMI VIVEKANANDA |
पुस्तक के लेखक / Author of Book : | Swami Vivekananda |
पुस्तक की भाषा/ Language of Book : | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का आकार / Size of Ebook :
| 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ / Total Page in Ebook :
| 79 Page |
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व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास - स्वामी विवेकानंद ने भारत में उस समय अवतार लिया जब यहाँ हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मँडरा रहे थे । पंडित - पुरोहितों ने हिंदू धर्म को घोर आंडबरवादी और अंधविश्वासपूर्ण बना दिया था । व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास
ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म को एक पूर्ण पहचान प्रदान की । इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्न छोटे - छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था । तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो , अमेरिका में विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई ।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था , " यदि आप भारत को जानना चाहते हैं , तो विवेकानंद को पढिए । उनमें आप सबकुछ सकारात्मक ही पाएँगे , नकारात्मक कुछ भी नहप । " रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था , " उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है ।
वे जहाँ भी गए , सर्वप्रथम हुए ... हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता । वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे तथा सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी । हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख , ठिठककर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा , " शिव ! यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो ।
" 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए , वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे । वे केवल संत ही नहप थे , एक महान देशभक्त , प्रखर वक्ता , ओजस्वी विचारक , रचनाधर्मी लेखक और करुण मावनप्रेमी भी थे ।
अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था , " नया भारत निकल पड़े मोदी की दुकान से , भड़भूजे के भाड़ से , कारखाने से , हाट से , बाजार से ; निकल पड़े झाड़ियों , जंगलों , पहाड़ों , पर्वतों से । " और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया ।
वह गर्व के साथ निकल पड़ी । गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन - समर्थन मिला , वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था । इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता - संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा - स्रोत बने । उनका विश्वास था कि पवित्र भारत वर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है ।
यह बड़े - बड़े महात्माओं तथा ऋषियों का जन्म हुआ , यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहप - केवल यहप आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है ।
उनके कथन - " उठो , जागो , स्वयं जगकर औरों को जगाओ । अपने नर - जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहप , जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए । " - पर अमल करके व्यक्ति अपना ही नहप , सार्वभौमिक कल्याण कर सकता है । यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
प्रस्तुत पुस्तक ' व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास ' में स्वामीजी ने सरलतम शब्दों में एक आम आदमी को उसके विकास के पूर्णत्व बिंदु तक पहुँचाने का मार्ग प्रेरक और ओजपूर्ण शब्दों में प्रशस्त किया है । उनके शब्दों को जीवन में उतारकर व्यक्ति न केवल अपना बल्कि अन्य उपेक्षित लोगों के जीवन में भी आशा का संचार कर सकता है ।
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1 टिप्पणियाँ
Vyktitva ke vikas
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