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हैलो दोस्तों आज हम लेखक Jordan B. Peterson की Book 12 Rules for Life(जीवन के 12 नियम) के बारे में जानेंगे । 12 Rules for Life By Jordan B. Peterson Hindi Book Summary And Download
इस किताब के दो इतिहास हैं , एक संक्षिप्त और दूसरा विस्तृत हम अपनी चर्चा की शु रुआत संक्षिप्त इतिहास से करेंगे । सन 2012 में मैंने कोरा नामक एक वेबसाइट में योगदान देना शुरू किया । कोरा पर कोई भी व्यक्ति , किसी भी तरह का सवाल पूछ सकता है और कोई भी व्यक्ति उसका जवाब भी दे सकता है ।
पाठकों को जो जवाब पसंद आते हैं , वे उन्हें अपवोट ( पक्ष में वोट देना ) करते हैं और जो जवाब उन्हें पसंद नहीं आते , उन्हें वे डाउनवोट ( विपक्ष में वोट देना ) कर देते हैं । इस तरह जो जवाब सबसे उपयोगी होता है , वह जवाबों की सूची में ऊपर उठते हुए उच्चतम स्थान तक पहुँच जाता है , जबकि बाकी के जवाब पिछड़कर ढेर सारे जवाबों की भीड़ में कहीं खो जाते हैं । मैं इस वेबसाइट को लेकर उत्सुक था । इसका हर किसी के लिए मुफ्त होना मुझे अच्छा लगा ।
इसमें होनेवाली चर्चा अक्सर बड़ी सम्मोहक होती । एक ही सवाल पर आए ढेरों जवाबों में विविध प्रकार के मतों से सामना होना वाकई दिलचस्प था । जब भी मैं एक ब्रेक लेता ( या यूँ कहें कि अपना काम पूरा करने के बजाय टालमटोल करता ) तो अपने कंप्यूटर पर कोरा वेबसाइट खोल लेता और ऐसे सवालों की तलाश करने लगता , जिनके जवाब दे सकूँ ।
आखिरकार मैंने कुछ सवालों के जवाब देना शुरू कर दिया , जैसे खुश रहने और संतुष्ट रहने के बीच क्या फर्क है ? ' , ' जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है , वैसे वैसे जीवन की कौन सी चीजें बेहतर होती जाती हैं ? ' और ' वह क्या है , जो जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है ? ' कोरा वेबसाइट आपको बताती है कि आपका जवाब कितने लोगों ने देखा और आपको कितने वोट मिले ।
इससे आप यह तय कर सकते हैं कि वेबसाइट के पाठकों तक आपकी पहुँच कितनी है और यह देख सकते हैं कि लोग आपके विचारों के बारे में क्या सोचते हैं । कुल जितने लोग इसके जवाबों को देखते हैं , उनमें से एक छोटा सा ही हिस्सा ऐसा होता है , जो किसी जवाब को अपवोट करता है ।
इस वेबसाइट पर मैंने अपना पहला जवाब पाँच साल पहले दिया था और वह सवाल था कि ' वह क्या है , जो जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है ? " जुलाई 2017 तक , इन शब्दों को लिखते समय पाँच सालों की लंबी अवधि के बाद मेरे उस जवाब को अपेक्षाकृत कम पाठक मिले ( 14000 पाठकों ने मेरा वह जवाब देखा और उसे 133 अपवोट मिले । ) जबकि उम्र बढ़नेवाले सवाल पर मेरी प्रतिक्रिया को 7200 लोगों ने देखा और उसे 36 अपवोट मिले ।
इस आँकड़े को एक उपलब्धि तो कतई नहीं कहा जा सकता । हालाँकि यह अपेक्षित था । इस तरह की वेबसाइट्स पर पाठकों द्वारा ज़्यादातर जवाबों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है । जबकि कुछेक जवाब ऐसे भी होते हैं , जो ज़रूरत से ज़्यादा लोकप्रिय हो जाते हैं । जल्द ही मैंने एक और सवाल का जवाब दिया , ' ऐसी सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें कौन सी हैं , जो हर किसी को पता होनी चाहिए ?
इस सवाल के जवाब के तौर पर मैंने कोरा में कुछ निय मों या यूँ कहें कि कुछ सूत्रवाक्यों की एक सूची लिख दी । इनमें से कुछ बेहद गंभीर किस्म के थे और कुछ मज़ाकिया किस्म के जैसे जीवन में पीड़ा झेलने के बावजूद अपने अंदर आभार का भाव बनाए रखें ... कोई ऐसा काम न करें , जिससे आप नफरत करते हों ... चीज़ों को अस्पष्टता की धुँध में छिपाकर न रखें ... ' वगैरह - वगैरह । कोरा के पाठकों को मेरी यह सूची काफी पसंद आई ।
उन्होंने इस पर कमेंट्स किए और इसे अन्य पाठकों के साथ शेयर किया । उनकी प्रतिक्रियाएँ कुछ इस प्रकार थीं , ' मैं तो इसे प्रिंट करवाकर एक संदर्भ रूप में अपने पास रखूँगा । वाकई कमाल की सूची है , ' और ' आपने इस एक जवाब से पूरी वेबसाइट का दिल जीत लिया ।
अब हमें कोरा को बंद करके आराम से बैठ जाना चाहिए । ' यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो , जहाँ मैं एक प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हूँ , उसके छात्र मेरे पास आए और उन्होंने बताया कि उन्हें मेरा जवाब कितना अच्छा लगा । अब तक इस सवाल पर मेरे जवाब को 1 लाख 20 हजार लोग देख चुके हैं और इसे 2300 बार अपवोट किया जा चुका है ।
कोरा वेबसाइट पर मौजूद करीब छह लाख सवालों में से सिर्फ कुछेक सौ ही ऐसे हैं , जिन्हें अब तक दो हजार से ज़्यादा अपवोट्स हासिल हुए हैं ।
काम से बचने के चक्कर में टा लमटोल करने के दौरान उठे मेरे विचारों को लोगों की शानदार प्रतिक्रिया मिली । मैंने ऐसा जवाब लिख दिया था , जो दरअसल 99.99 प्रतिशत अंक दिलानेवाला जवाब था ।
जब मैंने जीवन के नियमोंवाली यह सूची कोरा पर लिखी थी , तब मुझे अंदाजा नहीं था कि इसे इतना पसंद किया जाएगा ।
इस पोस्ट के आसपास कुछ महीनों की अवधि में मैंने जो साठ से अधिक जवाब दिए थे , उन्हें लिखते समय मैंने पर्याप्त सावधानी बरती थी ।
बहरहाल कोरा सबसे अच्छी मार्केट रिसर्च उपलब्ध कराता है । इस पर प्रतिक्रिया देनेवाले लोग बेनाम होते हैं । वे हर पक्ष के प्रति उदासीन होते हैं और उनके मत सहज व निष्पक्ष होते हैं । इसलिए मैंने परिणामों पर गौर करते हुए अपने जवाब की असाधारण व असंगत सफलता के कारणों पर विचार किया ।
शायद उन नियमों का निर्माण करते समय मैं परिचित और अपरिचित बातों के बीच सही संतुलन बनाने में कामयाब रहा था । शायद लोग उस संरचनात्मक दृढ़ता की ओर आकर्षित हुए , जो इन नियमों में अंतर्निहित हैं या फिर शायद लोगों को सूचियाँ पढ़ना अच्छा लगता है ।
इसके कुछ महीने पहले मार्च 2012 में मुझे एक लिट्रेरी एजेंट ( लेखक का प्रतिनिधि , जो प्रकाशन समूहों और थिएटर व फिल्म निर्माताओं से लेखक की किताब या पटकथा से जुड़े सौदे कराता है ) का ई - मेल मिला ।
उस एजेंट ने मुझे सीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम ' जस्ट से नो टू हैप्पीनेस ' में बोलते हुए सुना था , जहाँ मैंने ' खुशी ही जीवन का लक्ष्य है ' विचार की आलोचना की थी । पिछले कुछ दशकों में मैंने बीसवीं शताब्दी के स्याह पहलुओं को रेखांकित करनेवाली ऐसी बहुत सी किताबें पढ़ीं हैं , जो खासतौर पर नाजी जर्मनी और सोवियत यू नियन पर केंद्रित थीं ।
सोवियत यूनियन में गुलामों के श्रम शिविरों की भयावहता का दस्तावे जीकरण करनेवाले महान रूसी लेखक एलेग्जेंडर सोल्ज़हेनिट्सन ने एक बार लिखा था कि ' हमें यह जीवन खुशी हासिल करने के लिए मिला है ।
इस विचार को माननेवाली रहमदिल विचारधारा दरअसल एक ऐसी विचारधारा है , जो हमें काम देनेवाले की लाठी का पहला प्र हार पड़ते ही क्षीण हो गई थी ।
संकट के समय जीवन में आनेवाली अपरिहार्य पीड़ा इस वि चार का भरपूर मज़ाक बना सकती है कि खुशी की तलाश ही किसी इंसान का सबसे उचित लक्ष्य है । इस विचार के बजाय मैंने उस रेडियो कार्यक्रम में यह सुझाव दिया कि हमें जीवन में एक गहन अर्थ की ज़रूरत होती है ।
मैंने बताया कि इस की प्रकृति को अतीत की महान कहानियों में निरंतर प्रस्तुत किया गया है और खुशी से ज़्यादा इसका संबंध संकट के समय अपने चरित्र का विकास करने से है । यह वर्तमान कार्य के विस्तृत इतिहास का हिस्सा है - Continue Reading
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