किताब के बारे में
हैलो दोस्तों आज हम लेखक प्रो. जोगा सिंह की Book 'Jindgi Ko Apni Sharton Par Kaise Jiyen' के बारे में जानेंगे।
जिस किताब को आप इस समय पढ़ रहे हैं यह कोई सामान्य किताब नहीं है । यह किताब एक ऐसे बीज के समान है जिसमें एक विशाल वृक्ष छुपा हुआ है ।
प्रो . जोगा सिंह जी ने किताब लिखकर हमें बीज उपलब्ध करा दिया है , अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे खाद - पानी देकर एक विशाल वृक्ष बना पाते हैं या नहीं । इस बीज में जिस वृक्ष की संभावना है वह इस युग की आवश्यकता है ।
हमारे समाज और हमारे निजी जीवन की आवश्यकता है । मैं प्रो . जोगा सिंह जी के संपर्क में फेसबुक के द्वारा आया था . इनके लेखों को पढ़ते हुए में इनकी धारदार लेखन शैली से प्रभावित हुआ । लेकिन उससे भी बड़ी बात यह थी कि वह सिर्फ बड़ी बड़ी बातें लिख ही नहीं रहे थे बल्कि उनको अपने जीवन में जी भी रहे थे ।
एक समय इनकी सेहत और आर्थिक स्थिति काफी खराब थी । उस मुश्किल दौर से प्रो . जोगा सिंह जी जिन सिद्धांतों का पालन करके निकल पाए , यह पुस्तक आपको उन्हीं सिद्धांतों के बारे में बताएगी ।
लेकिन इस पुस्तक में बताई गई बातों की सीमा रेखा सिर्फ इतनी ही नहीं है कि आप अपने निजी जीवन की समस्याओं को सुलझा पाएं , बल्कि यह पुस्तक एक बहुत बड़े सामाजिक बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार करती है । जिस दौर में हम पहुंच चुके हैं वहां पर अब हमारे पास चुनाव नहीं है । अगर हमने समूचे सामाजिक ढांचे को बदलने के लिए कदम नहीं उठाए तो हमारा सर्वनाश निश्चित है ।
मुझे बहुत खुशी है कि मुझे एक ऐसी पुस्तक की प्रस्तावना लिखने का मौका मिल रहा है जो कि एक नए सार्थक युग के निर्माण की सामर्थ्य रखती है ।
यह पुस्तक आपको अंदर तक झकझोर के रख देगी । इस पुस्तक को जरूर पढ़ें और मेरा दावा है कि पढ़ने के बाद आप अपने अंदर एक बदलाव महसूस करेंगे । व्यक्ति के अंदर बदलाव आने के बाद समाज में बदलाव आना बहुत दूर नहीं है । इस पुस्तक के लिए मैं प्रो . जोगा सिंह जी को ढेरों शुभकामनाएं देना चाहूंगा - आलोक मिस्टिक
क्या आप एक रोबोटिक जीवन के शिकार हैं ?
एक कैदी का आजीवन कारावास समाप्त हुआ तो उसे जेल से बाहर भेजा जाने लगा । दो संतरी उसे प्रवेश द्वार तक छोड़ने के लिए आए प्रवेश द्वार पर पहुंचने पर दोनों संतरियों में से एक ने आज़ाद हुए कैदी से पूछा , “ आज तो तुमको नया जीवन मिला है , आजीवन कारावास से मुक्ति मिली है ।
अब कैसा लग रहा है बाहर की खुली हवा में सांस लेकर ? " कहते हैं कैदी ने चारों ओर देखा , एक लंबी सांस खींची और उन्हें एक अद्भुत जवाब दिया , " हे संतरी , मुझे तुम दोनों जहां से लेकर आए हो वहीं छोड़ दो , मैं अब उसी जगह ठीक हूं . " जबकि वह आज से बाहर की दुनिया में अपना दूसरा जीवन शुरू करने वाला था , लेकिन उसका दुर्भाग्य ... वह तो जेल के अंदर का गुलामों सा जीवन जीने का आदी हो चुका था ।
बाहर की खुली हवा अब उसे रास नहीं आ रही थी । ताज़ी हवा में भी उसका दम घुटने लगा । ऐसा सुनकर आपको अजीब लगता होगा , लेकिन जेल के अंदर कुछ खास तरह की आदतों के आदी हो जाने पर ऐसा हो सकता है ।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं ... अब उसे लगता है कि वह जेल के अंदर बाहर से ज्यादा बेहतर रहेगा , क्योंकि अंदर उसे तय वक़्त के अनुसार सब कुछ मिला हुआ था । जेल के अंदर प्रतिदिन उसे एक निश्चित समय पर नाश्ता व भोजन दिया गया , सुरक्षा दी गयी , कभी कभार सप्ताहांत में जेल से बाहर भी ले जाया गया । पहनने के लिए जेल की एक खास पोशाक दी गयी ।
वहां उसके जीवन के सभी आयामों को तय कर दिया गया था । इन सब के लिए उसे ज़रा भी नहीं सोचना पड़ता था । सब कुछ अपने आप चलता रहता था . अंदर इन सब की कोई चिंता नहीं रहती थी । उसे कुछ नहीं करना पड़ता था ।
उसके साथ बस जिंदगी घट रही थी . वह खुद कोई निर्णय नहीं ले रहा था . जब कोई निर्णय नहीं था , तो कोई ज़िम्मेदारी भी नहीं थी । उसके लिए तो ये काफी सुकून की जिंदगी थी . तीस साल के लंबे वक़्त ने उसे इस आराम का आदी बना दिया था जहां उसने वर्षों तक अपनी सोच का उपयोग ही नहीं किया था ।
इस बात को सभी जानते हैं कि जब हम अपने शरीर के किसी हिस्से का उपयोग नहीं करते , तो वह कमजोर होता चला जाता है । उदाहरण के लिए , यदि हम साल - दो साल के लिए अपनी आंखें बंद कर लेते हैं तो अपनी दृष्टि खो देते हैं । हम अंधे हो जाते हैं . इसी तरह , यदि हम साल दो साल तक अपने पैरों का उपयोग नहीं करते , तो हमारे पैर चलने की शक्ति खो देते हैं
इसी तरह , अंदर उस कैदी को तीस वर्षों तक अपनी विचार शक्ति का उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ी . परिणामस्वरूप , उसकी विचार करने की शक्ति घटती चली गई और अंततः वह इतना कमजोर हो गया कि बाहर की ताज़ी हवा भी उसे दमघोंटू प्रतीत होने लगी । बाहर का खुलापन उसके लिए अब धमकी जैसा था । अब जरा एक गृहिणी के बारे में सोचिए ! वह रोज के कामों को कैसे निपटाती है ? उसे रोज़मर्रा के कामों के लिए भी पूरी योजना बनानी पड़ती है ।
कल क्या खाना बनाना है ? बाज़ार कब जाना है ? कपड़े कब धोने है ? वगैरह वगैरह .... ऐसी बहुत सी गतिविधियां हैं जो उसे हमेशा सक्रिय रखती हैं । लेकिन फिर भी उसके रोज के कामों में से कुछ काम बाकी रह ही जाता है और उसे उस पर पुनः विचार करना पड़ता है ।
उसके पास हमेशा कुछ काम निपटाने के लिए पड़ा रहता है । इसी सब से उसके मस्तिष्क का अच्छा खासा व्यायाम हो जाता है । जबकि इस सब के बीच उसे कई तरह की निराशा भी घेरती है । लेकिन फिर भी वह सारा दिन सक्रिय रहती है । क्योंकि उसके जीवन ने उसे सिखाया है कि दैनिक चुनौतियों को कैसे पूरा करना है ? जबकि , उस कैदी के पास परेशान होने के लिए कुछ भी नहीं था ।
और जब वह विगत तीस वर्षों से अपने मस्तिष्क का उपयोग ही नहीं कर रहा था , तो वह अक्षम हो चुका होता था । यही है एक तरह का रोबोटिक जीवन जिसका शिकार हम सब बन चुके होते हैं और हमें इसका पता भी नहीं चलता । क्या हमारा जीवन रोबोटिक हो चुका है ? इसे जांचने के लिए खुद पर एक सरल सा परीक्षण कीजिये ।
बहुत बारीकी से चिंतन करें कि हम जिन ऋषियों , संतों और किताबों का अनुसरण कर रहे हैं , क्या वो हमारे माता - पिता की पसंद है या हमारी ? यदि वे हमारे माता - पिता की पसंद के हैं , तो यह मान लीजिये कि हम नकारात्मकता , सुस्ती और बोरियत का शिकार हो चुके हैं , क्योंकि अब हम उन चीजों पर निर्भर होकर सिर्फ उन्हें दोहरा रहे हैं ।
अपने पहनावे , दाढ़ी , केश और अपने विश्वास प्रणाली की जांच करिए और पूछिये अपने आप से कि क्या ये आपके माता - पिता और आपके समुदाय के साथ मेल खाते हैं ? यदि हाँ , तो फिर आप भी एक कैदी की तरह जेल की कोठरी में रह रहे हैं . जांचिए कि आपकी शादी कैसे हुई थी ? यदि वो पारंपरिक मानदंडों के अनुसार थी तो फिर आप एक आदतन रवैये के शिकार हो चुके हैं . साथ ही इसकी भी जांच कीजिए कि कौन - कौन से महान लोगों की तस्वीरें आपके घर की दीवारों पर लटकी हुई हैं ? यदि वे सब आपके समुदाय की हैं , तो समझिए कि ये मर्ज बहुत खतरनाक हो चुका है ।
क्योंकि यहां धर्म ही सबसे बड़ा अपराधी है . यह आपकी सोच को कुछ विशेष तरीकों से आदतन करवा देता है और आपको पता ही नहीं चलता . यह आपको हर अवसर के लिए अपने पक्के और अंतिम नियम प्रदान कर देता है ।
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