सफल सेलिंग का मनोविज्ञान | SAFAL SELLING KA MANOVIGYAN (Hindi) | Author - Brian Tracy | Hindi Book Download


सफल सेलिंग का मनोविज्ञान

हैलो दोस्तों आज हम लेखक Brian Tracy  की Book सफल सेलिंग का मनोविज्ञान (SAFAL SELLING KA MANOVIGYAN (Hindi) ) के बारे में जानेंगे। ब्रायन ट्रेसी  बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं,  उन्हीं पुस्तकों में से सफल सेलिंग का मनोविज्ञान एक है।

इस पुस्तक का उद्देश्य आपको बहुत सारे विचार रणनीतियाँ और तकनीकें बताना है , जिनका इस्तेमाल करके आप पहले से ज्यादा संख्या में ज्यादा तेज़ी से और ज्यादा आसानी से तुरंत बिक्री कर सकेंगे । आगे के पन्नों में आप सीखेंगे कि ख़ुद से और अपने बेचने के करियर से इतने शानदार परिणाम कैसे पाएँ , जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी । 

आप सीखेंगे कि कुछ महीनों या कुछ ही हफ़्तों में अपनी बिक्री और अपनी आमदनी को दो गुना , तीन गुना , यहाँ तक कि चार गुना भी कैसे किया जाए । यह पुस्तक मेरे अंतरराष्ट्रीय रूप से सफल सेलिंग का मनोविज्ञान ऑडियो सेल्स प्रोग्राम का लिखित संस्करण है । 

इस प्रोग्राम का अनुवाद सोलह भाषाओं में हो चुका है और इसका इस्तेमाल 24 देशों में किया जाता है । यह इतिहास में सबसे ज्यादा बिकने वाला पेशेवर बिक्री प्रशिक्षण प्रोग्राम है । मिलियनेअर बनें ! 

जब ऑडियो प्रोग्राम सुनने वालों पर शोध किया गया , तो यह पता चला कि जितने सेल्स पीपल इन विचारों को सुनकर और इन पर अमल करके मिलियनेअर बने हैं , उतने किसी दूसरे सेल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम से आज तक नहीं बने इस सामग्री का इस्तेमाल करके मैंने खुदसंसार भर के पाँच लाख से ज्यादा सेल्स पीपल को प्रशिक्षित किया है । मैं हजारों कंपनियों और लगभग हर उद्योग में यह प्रशिक्षण दे चुका हूँ । 

यह सचमुच कारगर है ! मेरी कहानी में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया था । इसके बजाय कम उम्र में ही मैं संसार देखने निकल पड़ा । मैंने कुछ साल तक मज़दूरी की , जब तक कि मेरे पास यात्रा करने लायक़ पैसे नहीं आ गए । फिर मैं नॉर्वे के एक मालवाहक जहाज़ पर काम करते हुए उत्तरी अटलांटिक के पार गया । 

इसके बाद मैंने साइकिल , बस , ट्रक और ट्रेन से यूरोप , अफ्रीका तथा अंततः सुदूर पूर्व तक की यात्रा की । इस दौरान मैंने एक भी बार भोजन का नागा नहीं किया ; यह अलग बात थी कि मैंने बहुत बार इसे अनिश्चित काल के लिए टाल दिया । जब मुझे कोई मजदूरी का काम नहीं मिल पाया , तो हताश होकर में बिक्री के क्षेत्र में पहुँच गया । 

ऐसा लगता है कि हम जीवन में जो निर्णय लेते हैं , उनमें से अधिकतर ऐसे होते हैं कि हम रात को कोई चीज़ सोचते हैं और फिर बाहर निकलकर उसे आज़माते हैं कि वह कैसी रहती है । मेरे मामले में बिक्री करने का विचार कुछ ऐसा ही था ।

कल्पना सचमुच वह कार्यशाला है , जिसमें इंसान की बनाई सारी योजनाएँ ढाली जाती - नेपोलियन हिल 

ऐसा लगता है कि हम जीवन में जो निर्णय लेते हैं , उनमें से अधिकतर ऐसे होते हैं कि हम रात को कोई चीज़ सोचते हैं और फिर बाहर निकलकर उसे आज़माते हैं कि वह कैसी रहती है । बुनियादी प्रशिक्षण मुझे सीधे कमीशन पर नियुक्त किया गया और तीन हिस्सों वाला बिक्री प्रशिक्षण दिया गया : " ये रहे तुम्हारे कार्ड ; ये रहे तुम्हारे ब्रोशर ; वह रहा दरवाज़ा ! " इस " प्रशिक्षण " से हासिल ज्ञान के सहारे मैंने अपना सेल्स करियर शुरू किया । 

मैं कोल्ड कॉलिंग करता था । इसका मतलब था कि मैं अजनबियों को सामान बेचने की कोशिश करता था , यानि दिन में ऑफ़िस के अंजान दरवाज़े खटखटाता था और शाम को अजनबी घरों पर दस्तक देता था । जिस व्यक्ति ने मुझे नियुक्त किया था , वह बेच नहीं सकता था । लेकिन उसने मुझे बताया कि बिक्री “ संख्याओं का खेल " है । 

उसने कहा कि मुझे तो बस पर्याप्त लोगों से बात करनी थी और इसके बाद अंततः मुझे कोई न कोई मिल जाएगा , जो ख़रीद लेगा । हम इसे बेचने की " दीवार पर कीचड़ उछालना " विधि कहते हैं । यदि आप दीवार पर पर्याप्त कीचड़ उछालते हैं , तो कहीं न कहीं , कैसे न कैसे , इसमें से कुछ चिपक ही जाएगा । ) यह ज्यादा कारगर ज्ञान तो नहीं था , लेकिन मेरे पास बस यही था । फिर किसी ने मुझे बताया कि बिक्री दरअसल “ संख्याओं का खेल नहीं थी । 

इसके बजाय यह तो " अस्वीकृति का खेल " थी । आप जितनी ज्यादा अस्वीकृतियाँ बटोरते हैं , आपके उतनी ही ज़्यादा बिक्री करने की संभावना होती है । इस सलाह से प्रेरित होकर मैं इस जगह से उस जगह दौड़ता रहा , ताकि मुझे ज्यादा बार अस्वीकृति मिल सके । फिर लोगों ने कहा कि मुझमें बोलने की कला " थी , इसलिए मैं उसका भरपूर इस्तेमाल करने लगा ।

जब भी कोई व्यक्ति रुचि लेता नज़र नहीं आता था , तो मैं ज़्यादा ज़ोर से और ज्यादा तेज़ बोलने लगता था । लेकिन अफ़सोस कि तेज़ी से इस प्रॉस्पेक्ट से उस प्रॉस्पेक्ट तक भागते हुए , और हर व्यक्ति से ज़्यादा ज़ोर से और तेज़ी से बात कर हुए भी , मैं सफलता से कोसों दूर था और जैसे - तैसे गुज़र - बसर कर रहा था । 

क्रांतिकारी मोड़ मैं एक छोटे से गेस्टहाउस के एक छोटे कमरे में रहता था और बिक्री बस इतनी होती थी कि किराए का पैसा निकल आता था । छह महीनों तक इसी तरह जूझने के बाद मैंने आख़िरकार एक ऐसी चीज़ की , जिसने मेरा जीवन बदल दिया । मैंने हमारी कंपनी के सबसे सफल सेल्समैन से पूछा कि वह मुझसे अलग क्या कर रहा था । में कड़ी मेहनत से नहीं घबराता था । 

मैं सुबह पाँच - छह बजे उठ जाता था , दिन की तैयारी करता था और सुबह 7 बजे पार्किंग में इंतज़ार करता था , जब मेरे पहले प्रॉस्पेक्ट नौकरी करने आते थे । मैं दिन भर काम करता था , इस ऑफ़िस से उस ऑफ़िस तक और इस कंपनी से उस कंपनी तक दौड़ता रहता था । शाम को मैं रहवासी दरवाज़े खटखटाता था और रात को नौ दस बजे तक इसी काम में जुटा रहता था । अगर किसी घर में अंदर बत्ती जल रही होती थी , तो मैं घंटी बजा देता था । Reading Continue 


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