Dark Horse: Ek Ankahi Dastan(Hindi) | लेखक - नीलोत्पल मृणाल | Hindi Book Download | Hindi Book Buy at Amazon

Dark Horse: Ek Ankahi Dastan(Hindi) | लेखक - नीलोत्पल मृणाल | Hindi Book Download | Hindi Book Buy at Amazon 

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हैलो दोस्तों आज हम लेखक नीलोत्पल मृणाल की Book Dark Horse: Ek Ankahi Dastan(Hindi) के बारे में जानेंगे।

'डार्क हॉर्स' हिंदी में लिखे गए इस दशक के सबसे लोकप्रिय उपन्यासों में से एक है।  हिंदी माध्यम से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के जीवन का ऐसा सजीव और विशद चित्रण आज तक किसी अन्य पुस्तक में केंद्रित नहीं था।  

देश की सर्वोच्च सम्मानीय परीक्षा की तैयारी करने वाला अभ्यर्थी न केवल एक आकांक्षी है, बल्कि उसकी गोद में बहुआयामी जीवन-शैली और संघर्ष भी हैं।  यह उसी संघर्ष की कहानी है।  

यह उपन्यास विशेष रूप से मुखर्जी नगर, दिल्ली की पृष्ठभूमि में गांवों/कस्बों से बाहर निकलने और शहरी जीवन से निपटने की असामान्य उदासी को दर्शाता है।  पाठकों के बीच अपार लोकप्रियता के अलावा इस उपन्यास को 2015 का 'साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार' भी मिल चुका है। यह इस पुस्तक का संपादित और परिष्कृत संस्करण है।

लेखक के बारे में

झारखंड के सुदूरवर्ती इलाके संथाल परगना में 1984 में जन्मे नीलोत्पल मृणाल अपने पहले उपन्यास 'डार्क हॉर्स' से पाठकों और साहित्यकारों के बीच पहले ही खुद को स्थापित कर चुके हैं।  मूल रूप से बिहार के रहने वाले नीलोत्पल रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से शिक्षा पूरी करने के बाद पिछले कई सालों से राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय हैं। 

छात्र आंदोलनों में विशेष भूमिका निभाने के साथ-साथ मृणाल लोक संगीत के क्षेत्र में टीवी के मंच पर पहले ही पहुंच चुकी हैं.  इन दिनों वह कवि-संगीत कार्यक्रमों में भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं और लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।

संभवत : जिस उम्र में आदमी के पास सबसे अधिक ऊर्जा रहती है , कुछ करने का पुरजोर उत्साह होता है और दुनिया को देखने - समझने की सबसे ज्यादा जिज्ञासा होती है , मैंने अपने जीवन का वह सबसे चमकदार दौर आईएएस की तैयारी के लिए मुखर्जीनगर में गुजार दिया । 

लिहाजा , यह तो तय था कि मैंने यहाँ की दुनिया , तैयारी के ताने - बाने , यहाँ की जिंदगी को नजदीक से देखा और बड़ी बारीकी से समझने की कोशिश भी की । शायद यही कारण रहा होगा कि मैंने अपने पहले उपन्यास में यहीं की जिंदगी को पन्नों पर उतारना सही समझा । 

मैं किसी और के कहने से पहले अपनी ओर से ही ये दावा करता हूँ कि मैंने इस उपन्यास के रूप में कोई साहित्य नहीं रचा है , बल्कि सच कहता हूँ कि मैंने तो साहित्य सराहना और आलोचना से मुक्त , बिना किसी शास्त्रीय कसौटी की चिंता किए , बस जो आँखों से देखा , अनुभव से सुना , उसे ही गूंथकर एक कहानी बुन डाली है । 

एक ऐसी जमात की कहानी , जिनके साकार सपनों की चमक तो सब देखते हैं और उनके लिए प्रशस्तियाँ लिखी जाती हैं , लेकिन इस सपने को हकीकत में बदलने के बीच वे कितने पहाड़ चढ़ते है , कितने दरिया पार होते हैं , कितने पाताल धँसते हैं और कितने रेगिस्तान भटकते हैं , इस पर अब तक बहुत कुछ लिखा जाना बाकी था । 

मैंने बस वही सच लिखा है । इसे लिखने में मैंने अपनी कल्पना से कुछ भी उधार नहीं लिया । जो कुछ अनुभव ने जमा कर रखा था , उसी से उपन्यास रच डाला । अब यह पाठकों को ही तय करना है कि इसमें साहित्य कितना है और एक जिंदगी की सच्ची कहानी कितनी है । 

उपन्यास की भाषा को लेकर कहना चाहूँगा कि कहीं - कहीं कुछ शब्द आपको अखर सकते हैं और भाषाई शुचिता के पहरेदार नाक भाँ भी सिकोड़ सकते हैं , पर मैंने भाषा के संदर्भ में सत्य को चुना । मर्यादा भी इसी में बचनी थी कि मैं सत्य को ही चुनूँ । सो , मैंने पात्रों को उनकी स्वाभाविक भाषा बोलने दी । 

मैंने उन्हें जरा भी आँख नहीं दिखाई और उनके कहे पर गर्दन गाँध कलम चलाता रहा । इसलिए यह साफ कर रहा हूँ कि किसी भी अच्छी - बुरी भाषा के लिए मैं नहीं , बल्कि मेरे पात्र जिम्मेदार हैं , जिनसे आप खुद ही आगे मिलेंगे । 

एक बात उपन्यास के शीर्षक पर भी कहूँगा । संभव है कि यह सवाल मन में आए कि हिंदी के उपन्यास का नाम अंग्रेजी में क्यों ? इस बारे में बस इतना कहना है कि वैश्वीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया एक - दूसरे के करीब आ गई है । न केवल खान - पान और पहनावे , बल्कि मनोरंजन और साहित्य के स्तर पर भी आदान - प्रदान जारी है । ऐसे में एक दूसरे की भाषाओं के शब्दों का स्वागत होना चाहिए । 

हर भाषा को दूसरी भाषा के शब्द चखने चाहिए । जो पचने लायक होगा वो हजम हो जाएगा और अपच होगा तो उगल दिया जाएगा । इसी क्रम में हिंदी में ऐसे कई अंग्रेजी शब्द हैं जो सहज रूप से प्रयुक्त होते हैं । इसे भाषाई स्वाभिमान का मुद्दा न बनाया जाए । इस मामले में थोड़ा लचीलापन अपनाना भाषा को समृद्ध ही करेगा । रही बात ' डार्क हॉर्स ' के नाम के इस कथानक से संबंध की तो भूमिका में नहीं ही बताऊँगा । 

इसके लिए तो आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा । अंत में यही चाहूँगा कि इस उपन्यास को इस कसौटी पर न कसा जाए कि इसे किसने लिखा है और क्यों लिखा है , बल्कि इसलिए पढ़ा जाए कि इसे किस विषय पर लिखा गया है और कितना सच लिखा गया है । मेरे गुरु रजनीश राज की प्रेरणा मित्र जय गोविंद , नीशिथ और नवीन के निरंतर सहयोग ने मुझे इस मुकाम तक पहुँचाया है - लेखक की कलम से  Continue Reading 



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