हॉस्पिटल से जिन्दा कैसे लौटे : Hospital se Zinda Kaise Lote | Author - Dr. Biswaroop Roy Chowdhury | Hindi Book Summary

हॉस्पिटल से जिन्दा कैसे लौटे : Hospital se Zinda Kaise Lote | Author  - Dr. Biswaroop Roy Chowdhury | Hindi Book Summary 

Hospital se Zinda Kaise Lote


हॉस्पिटल से जिन्दा कैसे लौटे : Hospital se Zinda Kaise Lote | Author - Dr. Biswaroop Roy Chowdhury | Hindi Book Summary 

हैलो दोस्तों आज हम लेखक Dr. Biswaroop Roy Chowdhury की Book 'हॉस्पिटल से जिन्दा कैसे लौटे : Hospital se Zinda Kaise Lote' की हिन्दी Summary पढ़ेंगे ।

मैं अपने पाठकों से यह वादा नहीं कर सकता कि वे इस पुस्तक को पढ़कर हमेशा जीवित रहेंगे या अमर हो जाएंगे। हां, मुझे विश्वास है कि यदि वे इस पुस्तक में दिए गए सुझावों और सुझावों का पालन करते हैं, तो वे निश्चित रूप से एक लंबा और स्वस्थ जीवन पाएंगे और उनके जीवन का अंतिम समय दुख और बीमारियों से रहित होगा।

यह पुस्तक कई अस्पतालों, डॉक्टरों, चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सा विश्वविद्यालयों के अध्ययन, रिपोर्ट, सर्वेक्षण और परीक्षणों पर आधारित है।

बीमारी : एक व्यापार पुस्तक का शीर्षक न केवल भ्रामक अपितु चौंका देने वाला भी है । हम तो ऐसी बात सोच भी नहीं सकते । जरा सा कोई रोग होते ही सबसे पहले हम डॉक्टर या अस्पताल के दर पर माथा टेकने पहुंच जाते हैं । वहां जाते ही हमें लगता है कि हम अपने मसीहा के पास पहुंच गए और अब किसी तरह की चिंता या परेशानी नहीं रही किंतु यह पुस्तक तो जैसे हमारी सदियों पुरानी मान्यताओं व विश्वास पर करारी चोट करने वाली है । 

यह हमें बताने वाली है कि हॉस्पिटल से जीवित कैसे लौटें मानो अस्पताल रोगमुक्ति का कोई केंद्र नहीं बल्कि यमराज का घर हो ! दरअसल अब तक सामने आए आंकड़े तो यही बताते हैं कि अस्पताल जाने पर प्रायः मरने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है । यानी यदि आपकी निकट भविष्य में मरने की संभावना नहीं भी है , तो भी वहां का वातावरण , अवस्थाएं , डॉक्टरों व कर्मचारियों द्वारा जाने अनजाने में की गई भूलें आपको यमराज के द्वार तक पहुंचाने की भूमिका रच देती हैं । अब अस्पताल में होने वाली इन सामान्य भूलों पर एक नज़र डालें : 

पहला मामला : 17 साल की सुनैना की मौत हार्ट ट्रांसप्लांट के दो सप्ताह के भीतर ही हो गई । आप कहेंगे कि इसमें भला इतनी हैरानी की क्या बात है । ऐसा तो किसी के भी साथ हो सकता है । हो सकता है कि उसकी इतनी ही आयु शेष थी या उसे ऑपरेशन सूट नहीं किया । यदि ऐसा होता तो संभवतः हम भी अपने मन को तसल्ली दे देते किंतु कारण यह था कि सर्जन ने यह गौर ही नहीं किया कि सुनैना का ब्लड ग्रुप , लगाए गए हार्ट से मैच ही नहीं कर रहा था । सर्जन की एक भूल ने 17 साल की उस युवती को सदा के लिए मौत की नींद सुला दिया । 

दूसरा मामला : 47 वर्षीय रामलाल अपने बाएं टेस्टीकल में दर्द और सिकुड़न की वजह से अस्पताल में भर्ती थे । सर्जन ने आशंका जताई कि यह कैंसर हो सकता है और बांया टेस्टीकल निकालने का फैसला किया परंतु गलती से दायां स्वस्थ टेस्टीकल निकाल दिया । अब इस भूल को आप क्या कहेंगे ? 

तीसरा मामला : 49 वर्षीय कमलकांत जब अस्पताल में भर्ती हुए तो उनके पेट में ट्यूमर था । सर्जरी से ट्यूमर निकाल दिया गया परंतु सर्जन गलती से कैची पेट में ही भूल गए । भले ही आपको यकीन न आए किंतु यह बात पूरी तरह से सत्य है । एक साल बाद एक और सर्जरी से कैची को निकाला गया परंतु तब तक कैंची पेट में इतने घाव कर चुकी थी कि पेट से कैंची निकालने के दो माह के भीतर ही कमलकांत चल बसे । 

चौथा मामला : 67 वर्षीय मारिया को एंजियोप्लास्टी के लिए अस्पताल ले जाया गया । एंजियोप्लास्टी के बाद गलती से उनको अपने ही वार्ड या बेड में ले जाने की बजाए दूसरे फ्लोर में ले जाकर लिटा दिया गया । दूसरे दिन अस्पताल के कर्मचारी मारिया को ऑपरेशन थिएटर ले गए क्योंकि उस फ्लोर पर ऑपरेशन के लिए ले जाए जाने वाले मरीजों को लिटाया जाता था नतीजन डॉक्टरों ने ओपन हार्ट सर्जरी के लिए मारिया के सीने को चीर दिया । तभी एक और डॉक्टर ने फोन से संदेश भिजवाया कि यह मरीज तो अस्पताल से छुट्टी लेने के लिए तैयार है और इनके हार्ट में कोई परेशानी थी ही नहीं । तब मारिया का सीना सिलाई कर उसे अस्पताल से विदा कर दिया गया । 



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