योग संजीवनी | Yog Sanjeevani | Author - Yogguru Dheeraj( योग गुरु धीरज ) | Hindi Book Summary
यह पुस्तक वर्तमान समय के स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नों पर केंद्रित है और पाठकों के साथ आसान तरीके से जुड़ती है। पुस्तक तनाव, चिंता और अन्य जीवन शैली रोगों के योगिक उपचार पर चर्चा करती है। यह योग के विशाल महासागर से चयनित योग प्रथाओं का एक संग्रह है। आप अपनी जरूरत के हिसाब से अपना खुद का योगाभ्यास चुन सकते हैं।
यह पुस्तक मौजूदा और भविष्य के योग शिक्षकों के लिए भी सहायक है।
योग संजीवनी नाम के पीछे यही दृष्टि है कि प्राचीन योग ज्ञान की ये संजीवनी मूर्छित हुई व्य वस्था , साधना , समाज व व्यक्ति को संपूर्ण जागरण दे । ये किताब उन लोगों के लिए उपयोगी साबित होगी जो योग में प्रवेश ही कर रहें हैं या जो योग सागर की गहराई में गोता लगाना चा हते हैं ।
ये किताब साधना की सही पद्धति विकसित करने के साथ योग चिकित्सा के गुर भी आपको बताएगी । आप समझ पाएंगे कि विभिन्न बीमारियों में हम किस तरह की योग साधना को विकसित करें । योगाभ्यास चाहे आसन हो , प्राणायाम या फिर ध्यान उनकी गहरी समझ को विकसित करने के साथ आप सामान्य गलतियों से बच पाने की सीख यहाँ प्राप्त करेंगे ।
यह किताब योग के शिक्षकों को भी गागर में सागर की अनुभूति देगी । यह उन्हें योग टीचर ट्रे निंग के एक संकलन की तरह भी नज़र आएगी । हज़ारों सालों की समय की धारा में योग की कई साधना विधि व पद्धति विकसित हुई । इनमें हठयोग व अष्टांग योग काफी प्रसिद्ध हैं । लेकिन लोगों के अंदर दोनों की समानता व विभि न्नता को लेकर बहुत सवाल है और वे इसका सही उत्तर रहे हैं ।
हठयोग व अष्टांग योग की परंपरा को प्रस्तुत करता पहला अध्याय इसके इर्द - गिर्द की सारी भ्रांतियों को ख़त्म करने में मददगार साबित होगा । आगे के दो अध्यायों में सूर्य नमस्कार पर चर्चा की गई है । योग के नाम के साथ सूर्य नमस्कार काफी प्रसिद्ध रहा है । लेकिन प्रसिद्धि के साथ सूर्य नमस्कार के साथ खिलवाड़ भी बहुत हुआ । कहीं वेट लॉस के नाम पर जल्दी - जल्दी सूर्य नमस्कार का चलन बढ़ा तो कहीं पावर योग के नाम पर 108 की मैराथन सूर्य नमस्कार की व्यायाम प्रणाली ने जोर पकड़ा ।
इन दो अध्यायों में हम समझेंगे कि आखिर सूर्य नमस्कार की खोज क्यों और कब हुई । इसके इति हास के साथ सूर्य नमस्कार की सही विधि , हर आसन की प्रामाणिक स्थिति और सांसों के साथ तालमेल के इसके वैज्ञानिक व ध्यानात्मक प्रारूपों को इन अध्यायों में प्रकट किया गया है ।
योगासन को लेकर किताब में कुछ छह अध्याय रखे गए हैं । हर अध्याय योगासन की बारीकि व विज्ञान को प्रकट करता है । ऐसे कई सारे आसन हैं जिनमें सांस लेने के तौर - तरीके अलग होते हैं । इन अध्यायों में एक फॉर्मूला ( जिसे हमने ब्रह्मणा व लंघणा नाम दिया है ) के ज़रिए आपको याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी कि कब आसन के दौरान सांस लेनी है और कब छोड़नी है ।
यह फॉर्मूला आसन अभ्यास की इस बड़ी समस्या को हल कर देगा । अगला अध्याय बताता है कि हर आसन कैसे हमारे स्वभाव के साथ जुड़ा हुआ है । हम अपने व्ययक्तित्व या नेचर को समझते हुए कैसे ख़ुद तय करें कि कौन - सा आसन हमें करना चाहिए और कब करना चाहिए । इस पुस्तक में अलग - अलग तरह की मानवीय प्रकृति के हिसाब से पाँच - पाँच आसनों का एक योगक्रम भी बनाया गया है ताकि पाठक कम से कम इन पाँच के साथ अपनी प्रकृति को समझते हुए साधना को गढ़ सकें ।
किताब का अगला अध्याय आसन करने की सही एलाइन्मेंट की सीख देता है । दरअसल हर आसन की एक ज्योमेट्रीक स्थिति होती है । हम इस स्थिति को आसन में प्राप्त कर लें तो कोई भी आसन आसान , ज़्यादा लाभदायी और शरीर में प्राण के प्रवाह को ज़्यादा व्यवस्थित कर हमें सेहतमंद बनाए रख सकता है । ज़्यादातर लोग योगासन तो कर रहें हैं लेकिन गलत स्थिति उन्हें लाभ देने की बजाए नई परेशानी ही खड़ी कर रहा है ।
आसन की इन नवीन वैज्ञानिक सीख के साथ बिना किसी योगगुरु के ही हमारे पाठक अपनी आसन स्थिति को बड़ी आसानी से समझ कर पाएंगे । इन समझ के साथ किताब अगले दो अध्यायों में दस आधारभूत आसनों का ढ़ांचा तैयार करती है । साथ ही आसन के साथ प्रतिक्रिया आसन यानी काउंटर आसन की समझ को भी इसमें संयोजा गया है । जैसा कि स्पष्ट है , प्राणायाम दो शाब्दिक शब्द से मिलकर बना है- प्राण और आयाम । यानी सांस की स्वाभाविक स्थिति को साधना के जरिए विस्तार या नियंत्रित कर इसे ज़्यादा जीवन दायिनी बनाना । लेकिन सांसों के प्रति दृष्टा होने की साधना के उलट आज ये ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ बनकर रह गई है ।
ऋषि - मुनियों ने लंबी गहरी व धीमी सांस की वकालत शास्त्रों में की है । जबकि वर्तमान में कपालभाति व भस्त्रिका जैसी तेज़ सांस लेने की श्वसन क्रिया को प्राणायाम कह कर प्रस्तुत किया जा रहा है । ये बात आमलोगों को भी समझ में आने योग्य है कि लंबी गहरी सांस की जगह जल्दी सांस लेने से कभी भी ज़्यादा ऑक्सीजन या प्राण हमारे अंदर प्रवेश नहीं कर सकता ! बीमारी , भय , डर इत्यादि अवस्था में ये बात आमलोग भी मह सूस करते हैं कि सांस गति तेज़ हो जाती है , तो ऐसे में भला प्राणायाम के नाम पर सांस की तेज़ गति कर हमें अमृत की प्राप्ति कैसे होगी ? इसके उलट , क्या ये हमारे अंदर बीमारी , भय व दूसरी परेशानी नहीं पैदा करेगी ? प्राणायाम को समर्पित इन अध्यायों में इस तरह की भ्रांति यों को मिटाने का प्रयास किया गया है । साथ ही पाठकों को दस मुख्य प्राणायाम व दो श्वसन क्रिया की जानकारी , उनके लाभ व उनकी सही - सही विधियों की जानकारी यहाँ प्राप्त होगी । योग की साधना व चिकित्सा में नाड़ियों की महत्वपूर्ण चर्चा है ।
सूर्यनाड़ी व चंद्रनाड़ी इनमें से दो महत्वपूर्ण नाड़ी हैं । इन नाड़ियों की समझ , इसके पीछे का आधुनिक वैज्ञानिक महत्व और साधना में इसकी उपयोगिता को अगले अध्याय में पेश किया गया है । इससे आपको समझने में आसानी होगी कि कि क्यों हमारे ऋषियों ने योगासन को वर्कआउट जैसा बनाकर पेश नहीं किया । क्यों हमारे शास्त्रों ने धीमी लंबी गहरी सांस को रूपांतरण की कीमिया कहा था । क्यों शरीर को कैलोरी बर्निंग के नाम पर सताना , ज़्यादा मेहनत कराना खतरनाक हो सकता है । कैसे सूर्य व चंद्रनाड़ी का असंतुलन हमें बीमारी व अस्वस्थता की ओर ले चलता है ।
अगला अध्यान योग में विश्राम की कला और ध्यान की बारीकियों को पेश करता है । ध्यान को लेकर भी मौजूदा वक्त में बहुत सी भ्रांतियां पैदा हुई है । शास्त्र के अवलोकन में ध्यान क्या है और क्या उसकी कोई विधि है या वो एक अवस्था है , इसपर गहन समझ विकसित करने की कोशिश की गई है । इसी तरह मौजूदा वक्त में कुण्डलिनी योग को लेकर भ्रम व डर की मान सिकता से परे चक्र जागरण की ज़्यादा व्यावहारिक पक्ष को सामने लाता एक अध्याय है ।
चक्र जागरण का हमारे व्यक्तित्व विकास में क्या भूमिका है ? कैसे हर चक्र हमारे व्यक्तित्व को एक अलग आयाम में गढ़ता है- इन सबकी पड़ताल व साधना पद्धति को इस अध्याय में बताया गया है । कुण्डलिनी के इर्द गिर्द रहस्य व भ्रम के जाल बुनने के बजाए ये अध्याय सीधे आपके गढ़न में कुण्डलिनी योग के योगदान को प्रकट करता है ।
लेखक के बारे में
योग गुरु धीरज अहमदाबाद स्थित वशिष्ठ योग चैरिटेबल फाउंडेशन ट्रस्ट के संस्थापक हैं। वह दिल्ली स्थित प्रसिद्ध पत्रकारिता संस्थान IIMC (भारतीय जन संचार संस्थान) से पास आउट हैं और उन्होंने टीवी पत्रकार के रूप में तीन प्रमुख राष्ट्रीय समाचार चैनलों में काम किया है। वह 2009 से एक योग चिकित्सक हैं और 2019 में उनके YouTube चैनल योग गुरु धीरज के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
वशिष्ठ प्राणायाम को आधुनिक समय में उनके प्रमुख योगदानों में से एक माना जाता है।
उन्होंने योग के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए योगबली नामक एक राष्ट्रीय अभियान भी शुरू किया है।
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