श्रीमद्भगवद्गीता | लेखक - स्वामी रामसुखदास जी महाराज | हिन्दी Pdf Book
पुस्तक के बारे में/About Book -
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पुस्तक का नाम / Name of EBook :- श्रीमद्भगवद्गीता
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पुस्तक के लेखक / Author of Book :- स्वामी रामसुखदास जी महाराज
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पेजों की संख्या :- 1299 पेज
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पुस्तक की भाषा / Language of Book :- हिन्दी
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पुस्तक के प्रकार / Types of Book :- PDF | HARD COVER
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पुस्तक की समीक्षा :-
विश्व साहित्य में श्रीमद्भगवद्गीताका अद्वितीय स्थान है ।
यह साक्षात् भगवान् के श्रीमुख से निःसृत परम रहस्यमयी दिव्य वाणी है ।
इसमें स्वयं भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मनुष्य मात्र के कल्याण के लिये उपदेश दिया है ।
इस छोटे से ग्रन्थ में भगवान् ने अपने हृदय के बहुत ही विलक्षण भाव भर दिये हैं , जिनका आजतक कोई पार नहीं पा सका और न पा ही सकता है ।
हमारे परमश्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज ने इस अगाध गीतार्णव में गहरे उतरकर अनेक गुह्यतम अमूल्य रत्न ढूंढ़ निकाले हैं , जिन्हें उन्होंने इस ' साधक - संजीवनी ' हिन्दी - टीका के माध्यम से साधकों के कल्याणार्थ उदारहृदय से वितरित किया है ।
गीताकी यह टीका हमें अपनी धारणा से दूसरी टीकाओं की अपेक्षा बहुत विलक्षण प्रतीत होती है ।
अगर पाठक गम्भीर अध्ययन करें तो उसे और भी कई श्लोकोंमें आंशिक नये - नये भाव मिल सकते हैं ।
वर्तमान समय में साधनका तत्त्व सरलतापूर्वक बताने वाले ग्रन्थों का प्रायः अभाव - सा दीखता है , जिससे साधकोंको सही मार्ग - दर्शनके बिना बहुत कठिनाई होती है ।
ऐसी स्थितिमें परमात्मप्राप्तिके अनेक सरल उपायोंसे युक्त , साधकोपयोगी अनेक विशेष और मार्मिक बातोंसे अलंकृत तथा बहुत ही सरल एवं सुबोध भाषा - शैलीमें लिखित प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है ।
परम श्रद्धेय स्वामीजीने गीताकी यह टीका किसी दार्शनिक विचारकी दृष्टिसे अथवा अपनी विद्वत्ताका प्रदर्शन करनेके लिये नहीं लिखी है , अपितु साधकोंका हित कैसे हो - इसी दृष्टिसे लिखी है ।
परमशान्तिकी प्राप्ति चाहनेवाले प्रत्येक साधकके लिये , चाहे वह किसी भी देश , वेश , भाषा , मत , सम्प्रदाय आदिका क्यों न हो , यह टीका संजीवनी बूटीके समान है ।
इस टीकाका अध्ययन करनेसे हिन्दू , बौद्ध , जैन , पारसी , ईसाई , मुसलमान आदि सभी धर्मोंके अनुयायियों को अपने - अपने मतके अनुसार ही उद्धारके उपाय मिल जायेंगे ।
इस टीकामें साधकोंको अपने उद्देश्यकी सिद्धिके लिये पूरी सामग्री मिलेगी । परमशान्तिकी प्राप्तिके इच्छुक सभी भाई - बहनोंसे विनम्र निवेदन है कि वे इस ग्रन्थ- रत्नको अवश्य ही मनोयोगपूर्वक पढ़ें , समझें और यथासाध्य आचरणमें लानेका प्रयत्न करें ।
तैंतीसवें संस्करणका नम्र निवेदन श्रीमद्भगवद्गीताकी ' साधक - संजीवनी ' टीका लिखनेके बाद गीताके जो नये भाव उत्पन्न हुए , उन्हें परम श्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराजने परिशिष्टके रूपमें लिख दिया ।
पहले यह परिशिष्ट अलग - अलग तीन भागों में प्रकाशित किया गया । अब उसे साधक - संजीवनी टीकामें सम्मिलित करके प्रकाशित किया जा रहा है ।
परिशिष्टके साथ - साथ साधक - संजीवनी टीकामें भी कहीं - कहीं आवश्यक संशोधन किया गया है । परिशिष्टमें गीताके अत्यन्त गुह्य एवं उत्तमोत्तम भावोंका प्राकट्य हुआ है ।
अतः आशा है कि पाठकगण साधक - संजीवनीके इस संशोधित तथा संवर्धित संस्करणसे अधिकाधिक लाभ उठानेकी चेष्टा करेंगे । - प्रकाशक
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