बुद्ध धम्म का सार | Buddh Dhamm ka Saar | The Essence Of Buddhism(Hindi) | हिन्दी पीडीएफ डाउनलोड
बुद्ध धम्म का सार |
हैलो दोस्तों आज हम आपके लिए लेखक - प्रोफेसर पी. लक्ष्मीनरसू की पुस्तक 'बुद्ध धम्म का सार - Buddh Dhamm ka Saar - The Essence Of Buddhism' की हिन्दी पीडीएफ लेकर आए हैं । इस हिन्दी पीडीएफ को आप डाउनलोड भी कर सकते है ।
बुद्ध धम्म का सार (Buddh Dhamm ka Saar) पुस्तक का डाउनलोड लिंक नीचे दिया गया है।
पुस्तक के बारे में/About Book - बुद्ध धम्म का सार | Buddh Dhamm ka Saar | The Essence Of Buddhism
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पुस्तक का नाम / Name of EBook :- बुद्ध धम्म का सार | Buddh Dhamm ka Saar | The Essence Of Buddhism
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पुस्तक के लेखक / Author of Book :- प्रोफेसर पी. लक्ष्मीनरसू / Professor P. Laxmi Narsu
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पेजों की संख्या :- 156 पेज
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पुस्तक की भाषा / Language of Book :- हिन्दी
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पुस्तक के प्रकार / Types of Book :- PDF | HARD COVER
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प्रकाशक के दो शब्द
'The Essence Of Buddhism' ( बौद्ध धम्म का सार) प्रोफेसर पी. लक्ष्मीनरसू की अद्वितीय कृति हैं । इसकी प्रशंसा डॉ. भीमरावरामजीअम्बेडकर ने अपनी प्रस्तावना ( १९४८ का प्रकाशन) में की है ।
इस में दोराय नहीं कि आज भी इस ग्रन्थ की तुलनामें अन्य ग्रन्थ नहीं बैठ सकतें। यह पुस्तक उस दौरान लिखी गई जब इस देशकी कुछ पहाड़ी भागको छोड़कर, बुद्ध व उसके संदेश का प्रायः लोप हो गयाथा ।
बुद्ध का अमर संदेश केवल 'इन्टलेक्चुअल' स्तरपर रह गया था, जनस्तर पर नहीं । डॉ. अम्बेडकर के धर्मातरसे पहले, इस देश में ऐसी विभूतियाँ पैदा होती रही हैं जिन्हों ने कम से कम, इस मानवीय व वैज्ञानिक वादी धम्म को मानसिक स्तर पर कायम रखा।
इन विभूतियों में डॉ. ए. एल्. नायर (बम्बई) तथा प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू के नाम उल्लेखनीय हैं । बौद्ध भिक्षुओं में यदि हम गिनती करे तो प्रमुखतः अनागारिक धम्मपाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायत, भिक्षु जगदीश काश्यपः धम्मानंद कोसंबी व डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं ।
वैसे अनेक अन्य भिक्षुगण भी हैं जिनका कार्य धम्म प्रसार में कुछ कम नहीं जैसे भिक्षु ग. प्रज्ञानंद ( लखनऊ ), महास्थविर चन्द्रमणि जिन्होने बाबा साहब को धम्मदीक्षा दी थी।
प्रोफेसर नरसू का संपूर्ण जीवन वृत्तांत हमारे पास नहीं है। हमे जो भी ज्ञान हो सका है वह डॉ. अम्बेडकर की प्रस्तावना 'व धम्मानंद कोसंबी जी के आत्म चरित्र से प्रोफेसर नरसू मद्रास में डायनैमिक्स के जानेमाने विद्वान थे ।
आप के साथ सी. अयोध्यादास जी कार्य करते थे । प्रोफेसर नरसू व सी. अयोध्यादास ने साउथ बुद्धिस्ट एशोसिएसन' की स्थापना की और इसके माध्यम से, १९१० में भारतसरकार से बौद्धों की अलग से जनगणना कराई। उस समय १८००० बौद्ध मद्रास राज्य में थे ।
प्रोफेसर नरसू के जीवन के बारे में कुछ संदर्भ हमें धम्मानंदजी के आत्म चरित्र से मिलते हैं । आप लिखते हैं: ' मद्रास शहर में उस समय महाबोधि नाम की एक बौद्ध संस्था थी।
उस संस्था के अध्यक्ष प्रोफेसर लक्षमी नरसू नाइडू व सचिव सिंगारावेलू थे। बुद्ध पूर्णिमा के दिन, बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ, उस अवसर पर कुछ पूजा अर्चना करने के अलावा, यह संस्था और कुछ नहीं करती थी ।
उस उत्सव को जो भी खर्च आता था वह ब्रह्मदेश (बर्मा) के प्रसिद्ध व्यापारी श्री मोंगश्वे देते थे । मद्रास में परिहार ( पाराया) अतिशूद्र जाति के बहुत से लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था।
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