भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि - कुमार संवाद | हिन्दी पीडीएफ
दोस्तों आज हम लेखक कुमार संवाद की पुस्तक भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि की हिन्दी Pdf लेकर आए हैं इस पुस्तक को आप दिए गए DOWNLOAD LINK पर जाकर सेव कर सकते है।
भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि हिन्दी पीडीएफ टाइप बुक डाउनलोड करें बिल्कुल मुफ्त में।
पुस्तक के बारे में/About Book - भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि
-------------------‐--------------------------------‐------------
पुस्तक का नाम / Name of EBook :- भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि
-------------------‐--------------------------------‐----------------
पुस्तक के लेखक / Author of Book :- कुमार संवाद
-------------------‐--------------------------------‐------------------
पेजों की संख्या :- 91 पेज
-------------------‐--------------------------------‐------------------
पुस्तक की भाषा / Language of Book :- हिन्दी
-------------------‐--------------------------------‐------------------
पुस्तक के प्रकार / Types of Book :- PDF | HARD COVER
-------------------‐--------------------------------‐-----------------
LINK :- DOWNLOAD 1| DOWNLOAD 2
भारतीय इतिहास - विश्वगुरु की इतिहास दृष्टि पुस्तक को Amazon से Buy करने के लिए यहाँ क्लिक करें
अन्य हिन्दी पुस्तकें
- जीवात्मा जगत के नियम | खोरशेद भावनगरी | हिन्दी पीडीएफ | THE LAWS OF THE SPIRIT WORLD
- धन को आकर्षित कैसे करें - How To Attract Money | डॉ. जोसेफ़ मर्फ़ी | हिन्दी पीडीएफ
- लोक व्यवहार - Lokvyavahar | लेखक - लेस गिबलिन | हिन्दी पीडीएफ
- सुपर अमीर बनने की मास्टर चाबी हिन्दी पीडीएफ डाउनलोड बाय नेपोलियन हिल
- ऐसी जियो ठग लाइफ जिंदगी बदलने वाले ढीठ मंत्र | लेखक - राघव अरोडा | हिन्दी पीडीएफ डाउनलोड
- सक्सेस की यूनिवर्सिटी | लेखक - ऑग मैंडिनो | हिन्दी पीडीएफ
किसी भी राष्ट्र के लिए इतिहास बोध उतना ही आवश्यक है जितना की स्वयं उसका अस्तित्व। यदि किसी राष्ट्रके अस्तित्व में उसका इतिहास बोध सम्मिलित नहीं है तो वह राष्ट्र एक भूमि का टुकड़ा मात्रा है।
इसीलिए ऐसे विचारक जो किसी राष्ट्र के इतिहास को नकारना या उससे मुंह छुपाना चाहते हैं, वे सदैव प्रयास करते हैंकि "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद " को नकार कर "भौगोलिक राष्ट्रवाद" को स्थापित किया जाए, जहां राष्ट्रका मतलब केवल एक भूमिका टुकड़ा मात्रा होता है।
ऐसे विचारकों के लिए इतिहास को नकारने की वजह उनके चित्त में छपी इतिहास की धूमिल छवि या इतिहासकी ऐसी दृष्टि होती है जिससे वह अपने इतिहास से किसी भी प्रकार पीछा छुड़ाना चाहते हैं।
जब अंग्रेजों के जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री कहते हैं कि "India must break with much of her past and not allow it to dominate the present", तो उसकी जड़ में भी वही इतिहास का नकार है।
यह पुस्तक भारतीय इतिहास को देखने के लिए भारतीय दृष्टि की खोज करती है।
इतिहास की आवश्यकता को लेकर मैं कभी भी संशय में नहीं रहा हूं।
इस पुस्तक को लिखने से पहले मेरे सामने एकमात्र सवाल यही था कि भारतीय इतिहास को देखने की दृष्टि क्या होनी चाहिए। क्या यह नायक केंद्रित होनी चाहिए? क्या यह जन केंद्रि होनी चाहिए?
क्या राजनैतिक संघर्ष केंद्रित होनी चाहिए? क्या यह आर्थिक कारणों और परिणामों का वर्णन होना चाहिए?
ऐतिहासिक घटनाओं के लिए सामाजिक कारणों को आधार माना जाए या सांप्रदायिक संघर्षों को आधार माना जाए?
भारत के द्वारा जब विश्वगुरु होने का दावा किया जाता है तो इसकी इतिहास दृष्टि कैसी होनी चाहिए?
क्या यह ज्ञान केंद्रित नहीं होनी चाहिए?
भारत का काल विभाजन भारत में ज्ञानसृजन की स्थिति को लेकर क्यूं नहीं होना चाहिए?
भारत का राजनैतिक प्रशासनिक आर्थिक इतिहास ज्ञान सृजन में उनके योगदान पर केंद्रित क्यों नहीं होना चाहिए?
अगर हम ज्ञान केंद्रित भारत का काल विभाजन एवं इतिहास लेखन करते हैं तो उसके कई लाभ हैं।
ऐसी दृष्टि के साथ हम यह स्थापित कर सकते हैं कि केवल राजनैतिक शक्ति धारण करके सभ्यता की रक्षा करने वाले वर्ग या नायक ही सम्मानित नहीं हैं बल्कि विभिन्न प्रकार से इस सभ्यता का सृजन करने वाले शिल्पकार, आचार्य, वास्तुकार, कलाकार, गंदर्भ, आयुर्वेदाचार्य, कृषक और वणिक आदि भी उसी रूप में सम्मानित हैं क्योंकि ज्ञान का सृजन केवल व्यक्तिगत कार्य नहीं है। यह एक संयुक्त प्रयास है ।
इस दृष्टि के साथ हम देखते हैं कि सम्पूर्ण जन इतिहास में महत्वपूर्ण हो जाता है, यह अलग बात है कि इतिहास के अलग अलग चरण में अलग अलग समूहों का योगदान कम या ज्यादा होता रहा।
शांतिकाल में क्षत्रिय वर्ग उतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाता रहा बल्कि शेष समाज ज्ञान और अर्थ का सृजन करके भारत को समृद्ध करता रहा। जब भारत की सभ्यता व संस्कृति पर आक्रमण हुआ तो क्षत्रिय वर्ग की भूमिका अनिवार्य रूप से बढ़ी।
0 टिप्पणियाँ