कर्मभूमि लेखक मुंशी प्रेमचंद की पुस्तक का सारांश
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मुंशी प्रेमचंद की "कर्मभूमि" 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के इर्द-गिर्द घूमती है। उपन्यास आम लोगों के संघर्षों की पड़ताल करता है, गरीबी, असमानता और परंपरा और आधुनिकता के बीच टकराव जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
नायक, होरी, एक किसान है जो दमनकारी जमींदारों, भ्रष्ट अधिकारियों और सामाजिक मानदंडों से जूझते हुए कई चुनौतियों का सामना करता है। यह कथा रिश्तों की जटिलताओं पर प्रकाश डालती है, व्यक्तियों पर सामाजिक संरचनाओं के प्रभाव को चित्रित करती है।
"कर्मभूमि" शीर्षक का अनुवाद "कर्तव्य की भूमि" है, जो व्यक्तियों द्वारा अपनी-अपनी भूमिकाओं में निभाई जाने वाली नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों पर जोर देता है। उपन्यास प्रचलित सामाजिक व्यवस्था की आलोचना के रूप में कार्य करता है, जो उस युग के दौरान आम आदमी द्वारा सामना की जाने वाली कठोर वास्तविकताओं पर प्रकाश डालता है।
कहानी चरित्र विकास में समृद्ध है और न्याय और बेहतर जीवन के लिए प्रयास करने वाले व्यक्तियों के सामने आने वाली नैतिक दुविधाओं की पड़ताल करती है। यह हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति बनी हुई है, जो बदलते समाज में चुनौतियों और नैतिक दुविधाओं का सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करती है।
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